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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ( ९८ ) www. kobatirth.org अष्टांगहृदय | हलदी, मोथा, मरोड़फली, अडूसा, पाठा, ओंगा, कांसा, लोहा, गिलोय, दुरालभा, महापंचमूल, छोटी कटेरी, वडी कटेरी, विशाला, अतीस और वच ये तिक्त वर्ग द्रव्य हैं । कटु वर्ग के नाम | कटुको हिंगुमरिचकृमिजित्पंचकोलकम् |३०| कुठराद्या हरीतकाः पित्तं मूत्रमरुष्करम् | अर्थ -- हींग, मिरच, वायविडंग, पंचकोल (पीपल, पीपलामूल, चीता, चव्य और सोंठ, ) कुठेरादि, हरड़, बकरे का पित्ता और मूत्र, भिलावा ये सव तिक्तवर्ग के द्रव्य हैं इनके सिवाय मनासिल, सरसों, कूट आदि भी इसी गण में हैं । कषाय वर्ग के नाम | वर्गः कषायः ५ध्याक्षं शिरीषः खदिरो मधु ॥ कदम्बोदुम्बरं मुक्ताप्रवालाञ्जनगैरिकम् ३२| या कथिस्थ खर्जूरं बिसपद्भोत्पलादि च । अर्थ-- हरड़, बहेड़ा, सिरस, खैर, मधु, कदंब, गूलर, मोती, मूंगा, अंजन, गेरु, का कैथ, खिजूर, कमलनाल, पद्म, उत्पल तथा आदि शब्द से प्रियंगु, लोध, आदि ये कषाय वर्ग के द्रव्य हैं । मधुर द्रव्यों के गुण | मधुरं श्लेष्मलं प्रायो जीर्णाच्छालियवादृते ॥ मुद्राद्गोधूमतः क्षौद्रात्सिताया जांगलामिषात् अर्थ - - मधुर द्रव्य प्रायः कफकारक होते हैं परन्तु पुराने चांवल, पुराने जौ, मुंग, गेहूं, शहत, शर्करा, जांगल जीवों का मांस ये द्रव्य मधुर होने पर भी कफकारक नहीं होते हैं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० १० अम्ल और लवण वर्ग । प्रायोऽम्लं पित्तजननं दाडिमामलकाटते । अपथ्यं लवर्ण प्रायश्चक्षुषो ऽन्यत्र सैंधवात् ॥ अर्थ- अनार और आमले को छोडकर शेष सव खट्टे पदार्थ प्रायः पित्तकारक हो है अर्थात् अनार और आमले तो खट्टे होने पर भी पित्तकारक नहीं होते । नमक वर्ग सब द्रव्य प्रायः नेत्रों को अहित होते हैं पर सेंधा नमक अहित नहीं होता । तिक्त कटु वर्ग | तिक्तं कटु च भूयिष्ठमवृष्यं वातकोपनम् । ऋतेऽमृतापटोलीभ्यां शुठी कृष्णा रसोनतः ॥ अर्थ-- तिक्त द्रव्यों में गिलोय और पटोल को छोड़कर सव प्रकार के तिक्त द्रव्य, और कटु द्रव्यों में सोंठ, पीपल और लहसनको छोड़कर बाकी सब पदार्थ अत्यन्त अवृष्य । और वात को प्रकुपित करने वाले होते हैं । For Private And Personal Use Only कषाय वर्ग के गुण | कषायं प्रायशः शीतं स्तंभनं चाऽभयामृते । अर्थ- हरीतकी के सिवाय सब कषाय पदार्थ प्रायः शीतवीर्य और मलस्तंभन होते है रसों में शीतोष्णवीर्यता | रसाःकट्वम्ललवणा वीर्येणोष्णा यथोत्तरम्॥ तिक्तः कषायो मधुरस्तद्वदेव च शीतलः अर्थ -- कटु अम्ल और लवणरस उत्तरोत्तर उष्णवीर्य हैं अर्थात् कटुसे अम्ल और अम्ल से लवण उष्णवीर्यं हैं । इसीतरह तिक्त, कऔर मधुर प्रायः उत्तरोत्तर शीतवीर्य है रसों की रूक्षता । तिक्तः कटुः कषायश्च रुक्षा बद्धमलास्तथा ॥ अर्थ - तिक्त, कटु और कपायरस प्राय: रूक्ष और मलको बांधनेवाले होते हैं । षाय
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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