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सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत ।
(८९)
अनुपान का संक्षिप्त वर्णन। से क्लिम्न होगया है अथवा जो नेत्र रोगों विपरीत यदन्नस्य गुणैः स्यादविरोधि व ।। और क्षत रोगों से पीडित हैं उनको पीने अनुपानं समासन सर्वदा तत्प्रशस्थते।५१॥ के पदार्थ लोड देने चाहिये और सस्थ वा अर्थ- खाद्य पदार्थों के विपरीत गुण
अस्वस्थ सब लोगों को पान और भोजन काले अविकारी द्रव्यों का अनुपान सदा ही
के पीछे बहुत बोलना, मार्ग चलना, नींद हितकारी है । जैसे रूक्ष का स्निग्ध, स्निग्ध
लेना, धूप में फिरना, अग्नि से तापना, का रूद, गरम का ठंडा, ठंडे का रूखा,
सवारी पर चढना, पानी में तैरना, और खट्टे का मीठा, मीठे का खट्टा इत्यादि । घोडे आदि पर चढना । ये सब काम परन्तु ऐसा विपरीत सम्बन्ध न होना चाहिये | छोड़ देने चाहिये । जैसा दूध और खटाई का होता है।
भोजन का समय । __ अनुपान का कर्म। प्रसृष्टे विभूत्रे हृदि सुविमले दोषे स्वपथगे। अनुपानं करोत्यूर्जी तृप्ति व्याप्ति दृढांगतान विशुद्ध चोदारे क्षुदुपगमने वातेऽनुसरति॥ अवसंथातशैथिल्यविक्लित्तिजरणानि च ५२ तथाऽग्नादिक्ते विशदकरणे देहे च सुलघौ अर्थ- अनुपान से उत्साह, तृप्ति, सब
प्रयुजीताहारं विधिनियमितःकालःस हि मतः देह में अन्नरस का फैलना, दृढ़ता, अन्न
___अर्थ- मल मूत्र के त्याग से अच्छी संघात, शिथिलता, क्लिन्नता और परिपाका
तरह सुस्थ होचुका हो, हृदय निर्मल हो, होता है ।
बातादि सब दोष अपने अपने मार्ग में हो, अनुपान के अयोग्य रोग। । डकार शुद्ध हो, क्षुधा चैतन्य हो, अधोनोर्ध्वजत्रुगश्वासकासोरक्षितपनिले। । वायु ठीक होता हो, जठराग्नि और कायाग्नि गीतभाष्यप्रसंगे च स्वरभेदे च तद्धितम् ५३। उत्तेजित हों । सब इन्द्रियां विशद हों, देह
अर्थ- जत्रु ( ग्रीवा और वक्षःस्थल ) | में हलकापन हो उस समय आहार विधि के ऊपर वाले अंगों में होने वाले रोगों में | में कही हुई रीति से भोजन करै । यही अनुपान हितकारी नहीं होता, जैसे - इवास | भोजन का ठीक समय है । खांसी, उरःक्षत, पीनस, अत्यन्त गाने वा | इतिश्री अष्टांगहृदये भाषाटीकायां बोलने के सम्बन्ध में वा स्वर भेद में अनु- अष्टमोऽध्यायः ॥ ८ ॥ पान हितकारी नहीं है ।
पान के अयोग्य रोगी। प्रक्लिन्नदहमेहामिगलरोगवणातुराः।
नवमोऽध्यायः। पानं त्यजेयुः
सर्वश्चभाष्याध्वशयनं त्यजेत्॥५४॥ अथा तोद्रव्यादिविज्ञानीयमध्यायव्यारयास्यामः पीत्वा भुक्त्वाऽऽतपंवन्हि यानंप्लवनवाहनम अर्थ- अब हम यहां से द्रव्यादि विज्ञा
अर्थ- जिन का शरीर विसर्पादि रोगों / नीय अध्याय की व्याख्या करेंगे।
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