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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८८) अष्टांगहृदये । अ० ८ अर्थ-दाऊदखानि अदि शाली चां- | भोजन का प्रमाण । वल, गेंहूं, जौ, साठी चांवल, जांगल, मांस | अनेन कुक्षेद्वावंशौपानेनैकं प्रपूरयेत् । हरड, 'आमला, दाख, पटोली, मूंग, शर्करा, आश्रयं पवनादीनां चतुर्थमवशेषयेत् ।४६ । घृत, आंतरीक्ष जल, दूध, शहत, अनार, __ अर्थ-जठर का आधा भाग अन्न से, सेंधानमक, रात के समय नेत्रोंमें बल के नि- चौथाई भाग पानी से भरै और वातादि के मित्त घृत और मधु सहित त्रिफला इन सब | आश्रय के लिये चौथा भाग खाली रहने दे । द्रव्यों का निरन्तर व्यवहार करना चाहिये। भोजन के पश्चात् अनुपान । किसी पुस्तक में इतना पाठ विशेष है सुनि | अनुपानं हिमं वारि यवगोधूमयोहितम् । षण्णकगीवन्ती बालमूलकवास्तुकसू । दन्नि मधे विषे क्षौद्रे कोष्णं पिष्टमयेषु तु४७ स्वास्थ्यानुवृत्तिकृद्यञ्च रोगोच्छेदकरंचयत् । शाकमुद्गादिविकृती मस्तुतकाम्लकाञिकम् मुरा कृशानां पुष्टयर्थ स्थूलानां तु मधूदकम् अर्थ-उक्त सेबनीय द्रव्यों के अतिरिक्त शोषे मांसरसो मधं मांस स्वल्पे च पावके। दिनचर्या और ऋतुचर्याध्याय में कह हुए व्याध्यौषधावभाज्यस्त्रीलंघनातपकर्मभिः॥ स्वास्थ्य का अनुवर्तन करनेवाले और रोगों क्षीणे वृद्ध च बाले पयः पथ्यं यथामृतम् । का नाश करने वाले द्रव्यों का सेवन करना अर्थ-जौ और गेंहूं खाने के पीछे तथा उचित है। दही, शहत वा मद्यपान करने के पीछे भोजन के आदिमध्यान्त में कर्तव्य। अथवा विष में ठंडा जल पीना हितकारी विरोधमोचचोचासमोडकोत्कारिकादिकमा है । पर पिष्टक ( पिसे हुए आटे के वने ) अद्याद्रव्यं गुरु स्निग्धं स्वादु मन्दं स्थिरं पुरः । पदार्थो के खाने के पीछे थोडा गरम जल विपरीतमतश्चान्ते मध्येऽम्लवणोत्कटम् ४५ पीना हित है । शाक और मूंग के वने हुए अर्थ-आहार के आरंभ में कमलनाल, पदार्थों के पीछे दही का तोड़, तक्र और ईख, केला, कठोर, आम, मोदक, उत्कारि- खट्टी कांजी हित है । दुवले मनुष्यों की का ( लप्स्यादि ) तथा भारी. मधुर, स्निग्ध । पष्टि के लिये सुरापान, मोटे को दुवला मृदु और संग्राही पदार्थों का सेवन करै । करने के लिये शहत मिला हुआ जल, शोष आहार के अन्तु में इन से विपरीत अर्थात् रोग में मां सरस, मांस खाने के पीछे वा लघु, रूक्ष, कटु, तिक्त, और तीक्ष्ण और रेचक | मंदाग्नि में मद्यपान हितकर है। जो व्याधि, द्रव्यों का सेवन करै । आहार के बीच में औषधसेवन मार्गभ्रमण, अतिभाषण, स्त्री अधिक खट्टे और अधिक नमकीन पदार्थो का संगम, लंघन, आतप सेवन और भारवह सेयन करै । खरनाद में लिखा है “ कटू । नादि से क्षीण होगया है तथा बालक और लवणमम्लंवा पूर्वमाहारमाहरेत् । आहागे वृद्धो को दुग्धपान अमृत के समान गुणमधुरो ह्यग्रे गुरुविष्टम्यजीर्यति । कारी है। For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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