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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७६) अष्टांगहृदये। अ०७ शहत पानी । घी चर्वी । घो तेल | घी तीतरादिमांस और अरंड । पानी । आदि समान भागमें विरुद्ध हैं। तद्वत्तित्तिरिपत्राढयगोधालावकपिंजलाः ॥ तीन तीन जैसे शहत घी चर्वी । शहत धी | ऐरंडेनाग्निना सिद्धास्तत्तैलेन विमूर्च्छिताः । अर्थ-इसी तरह तीतर, मोर, गोधा, तेल । शहत घी पानी । घी चर्वी तेल । लवा, कपिंजल पक्षियों का मांस अरंडकी घी चर्वी पानी आदि समान भागमें मिलाकर | लकडी में पकाये हुए अरंडी के तेलके साथ सेवन करनेसे विरुद्ध होतेहैं। सिद्ध करके खाना विरुद्ध है । असमान शहत घी। हारित और हारिद्र । भिन्नांशेऽपि मध्याज्ये दिव्यवार्यनुपानतः ॥ हारीतमांसं हारिद्रशूलकप्रोतपाचितम्।४३। मधुपुष्करबजिं च मधुमेरेयशार्करम्। हारिद्रवन्हिना सद्योब्यापादयति जीवितम्। मंथानुपानः क्षैरेयो हारिद्रः कटुतैलबान् ४० भस्मपांशुपारध्वस्तं तदेव च समाक्षिकम्४४ ___ अर्थ-असमान भाग घी और शहत अर्थःहरीपल पक्षीका मांस हारिद्रवृक्ष मिलाकर पीनेके पीछे आन्तरीक्ष जल का | की लकडी सलाई में लगाकर हारिद्र की अनुपान विरद्ध है । शहत और पुष्कर बीज लकडी की आगपर भून तो तत्काल प्राणनामिले हुए विरुद्ध हैं । द्राक्षामद, खजूर का शक होता है । अथवा हरियल का मांस आसव और चीनी से बनाया हुआ शहत राख वा धूल ते मलीन होगया है और उस ये तीनों मिले हुए विरुद्ध हैं । द्धपाक खा- में शहत मिलाकर सेवन करै तो वह भी कर मठा पीलेना विरुद्ध है। विरुद्ध है। सरसों के तेल के साथ हारिद्रशाक विरुद्ध विरुद्धका शमन । होता है। " यत्किंचिद्दोषमुत्क्लेश्य न हरेत्तत्समासतः। तिलकल्क और पाई। | विरुद्धं शुद्धिरत्रेष्टा शमोवा तद्विरोधिभिः।४। उपोदकातिसाराय तिलकल्केन साधता । अर्थ-जो अन्न पान वा औषध वातादि___ अर्थ--तिलके कल्कके साथ रांधा हुआ के दोषों को अपने स्थान से चलायमान पोई का शाक अतिसार करता है । करके बाहर की ओर निकालने के लिये वगुला के विरुद्ध पदार्थ । प्रस्तुत करै परन्तु निकाल न सकै, संक्षेपसे वलाका वारुणीयुक्ता कुल्मायुश्च विरुध्यते॥ उन्हीं को विरुद्ध कहते हैं । इन विरुद्ध भृष्टा वाराहावसया सैव सद्यो निहत्यसून् । वस्तुओं के सेवन से हुए रोगोंको बमन वि___ अर्थ-बगुला का मांस वारुणी नामक रेचनादिद्वारा शुद्ध करै । अथवा केवल वमन मद्यके साथ विरुद्ध है । वही मूंग आदि के विरेचनादिद्वारा आरोग्यता प्राप्त नहो सकै साथ पकायाहुआ भी विरुद्ध है । शकर की तो उसके विपरीत गुणवाले द्रव्योंका प्रयोग चर्वी के साथ पका या हुआ बगले का मांस करके उक्लिष्ट वातादिक दोप वा उनसे तत्काल प्राणनाशक है । उत्पन्न हुए विकारों का शमन करै । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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