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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० ७ सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत । (७५) दुग्ध विरुद्ध शाक। पीपलके विरुद्ध पदार्थ । भक्षयित्वा हरितकं मूलकादि पयस्त्यजेत् । मत्स्यनिस्तलनस्नेहसाधिताः पिप्पलीस्त्यजेत् अथे-हरी मूली खाकर दूध न पीना चा- कांस्ये दशाहमुषितं सर्पिरुष्णं त्वरुष्करे। हिये । घी में छोंककर शाक बनाकर खाने के अर्थ-जिस तेलमें मछली पकाई गई हो पीछे दूध पीना निषेध नहीं है । इसी तरह उस तेलमें तलीहुई पीपल उपयोगमें लानी लहसन के साथ भी दूधका निषेध है परन्तु | नहीं चाहिये । कांसीके पात्रमें दस दिनतक औषध में निषेध नहीं है क्योंकि अग्नि आदि । रक्खा हुआ काम में न लौव । भिलावे के के संस्कारसे दध का द्रव्यान्तर होजाता साथ उष्णवीर्य वा उष्णस्पर्श द्रव्य सेवन नहीं करना चाहिये । __ अन्य विरुद्ध मांसादि ।। अन्यविरुद्ध द्रव्य । वाराहं श्वाविधा नाद्याला प्रपती ॥ भासो विरुध्यते शूल्यः कंपिल्लस्तकसाधितः। आममांसानि पित्तन माघसूपेन मूलकम् ।। अर्थ-भासनामक पक्षी का शूलपर भुना अवि कुसुभशाकेन विसः सह विरूढकम् ३३ हुआ मांस अर्थात् कवाव विरुद्धहै, तक्र में माषसूपगुडक्षीरख्याज्या कुचं फलम् । पकाया हुआ कंपिल विरुद्धहै । संग्रह में फलं कदल्यास्तक्रेण दन्ना तालफलेन वा ३४ , विशेष लिखाहै कि सौबीर नामक संधानके कणोषणाभ्यां मधुना काकमाचीं गुडेन वा। सिद्धां वा मत्स्यपचने पचने नागरस्य वा ॥ साथ तिलका कल्क, दूध के साथ लवण, सिद्धामन्यत्र वा पात्रे कामात्तानुषितानिशाम् नवनीतके साथ शाक, नये के साथ पुराना अर्थ- सहके मांसके साथ शूकर का द्रव्य, अपक्क द्रव्य के साथ एक द्रव्य, अग्नि मांस, दहीके साथ पृषत हरिण और मुर्गे से तापकर शीत्रही स्नान करना आदि सब का मांस, पित्त के साथ कच्चा मांस, उडद विरुद्ध है। की दालके साथ मूली, कसूमके शाक के धके विरुद्ध । संग भेड़का मांस, कमलनालके साथ अंकु-ऐकध्यं पायससुराशराः परिवर्जयेत् ।। रित अन्न, उरदकी दाल, गुड, दूध, दही अर्थ-खीर, सुरा और खिचड़ी एक वा घीके साथ लकुचफल, छाछ, दही वा । साथ नहीं खाना चाहिये । तालफलके साथ केला,मिरच, पीपल, शहत शहतके विरुद्ध । वा गुड़के साथ मकोय, अथवा जिस पात्र मधसर्विसांतलपान यानि द्विशास्त्रिशः ३८॥ में मछली पकाई गई हो उसमें पकाई हुई एकत्र वासमांशानि विरुध्यते परस्परम् । मकोय नहीं खाना चाहिये । अथवा सोंठके ___अर्थ-शहत, घी, च:, तेल और पानी पात्रमें सिद्ध की हुई, वा अन्यपात्र में रांधी । इनमेंसे दो दो तीन तीन समान भाग में हुई वा रातकी बासी रक्खी हुई मकोय नहीं मिलाकर सेवन करनेसे विरुद्धहैं । दो दो खानी चाहिये। | जैसे:- शहत, घी । शहत चर्वी । शहततेल | For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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