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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७४) अष्टांगहृदये। अ. ७ मिश्रित अन्नके आमाशयमें जाने पर रोगीको विरुद्ध भोजन । यथोपयुक्त वमन और पक्वाशय में जाने पर आनूपमामिषं मापक्षौद्रक्षीरविरूढकैः ॥२९ पोसाकी विरुध्यते सह विसै मूल के न गुडेन वा। यथोपयुक्त विरेचन देव । पीछे विष दोष की व | विशेषात्पयसामस्या मत्रमेवपि चिलीचिमः शान्ति के लिये दोनों हलदी, कुडाकी छाल, अर्थ-आन्यजीवा का मांस, उरद, गुड़, संभालू, वरियाली, दूध,चौलाईकी जड़, शहत, अंकुरित द्रव्य, कमलनाल, मूली और कुक्कुटांड और वावची इनको नस्य अंजन गुड़ ये सात विरद्ध हैं । दूधके साथ विशेष और पान द्वारा प्रयोग करें । | विरुद्ध है तथा चिलीचिम जाति की मछली ताम्रचूर्ण प्रयोग। तो अत्यन्तही विरुद्ध है ( चिलीचिममछली विषभुक्ताय दद्याच्च शुद्धायो मधस्तथा २६ सूक्ष्मांताम्ररजः काले सक्षौद्रं हृद्विशोधनम्।। के सब शरीर पर लोहितवर्ण की रेखा होती शुद्ध हृदिततः शाण हेमचूर्णस्य दापयेत् २७ / हैं और प्रायः यह भूमि पर रहती है ) । अर्थ-बिषखाने वाले के लिये उस बमन | दूध के विरुद्ध फल | विरेचन द्वारा शुद्ध करके यथोपयुक्त काल में विरुद्धमम्लं पयसा सह सर्व फलं तथा । हृदय की शुद्धि के लिये शहत में मिलाकर । अर्थ-सव प्रकारके खट्टे पदार्थ दूधके वहुत सूक्ष्म तावेका चूर्ण देना चाहिये हृदय | विरुद्ध हैं ( सब से द्रव और अद्रव पदार्थ शुद्ध होने के पीछे तीन माशे सुवर्ण का चूर्ण का ग्रहण है ) इसका यह तात्पर्य है कि पदेखें ( यहां वैद्य लोग तांवे और सौने की तले वा गाढे खट्टे पदार्थ दूध में डालकर भस्म दिया करते हैं)। अथवा दृध पीनेसे पहिले वा पीछ खानाहेमचूर्ण के गुण । उचित नहीं है पक वा अपक फल भी दृधके न सजते हेमपांगे पनपत्रेऽबुवद्विषम् । के साथ खाना विरुद्ध है । जायते विपुलं चायुर्गरेऽप्येष विधिः स्मृतः। अर्थ-जैसे कमल के पत्ते पर जल नहीं दुग्ध विरुद्ध धान्य । | तद्वत्कुलत्थवरककंगुवल्लमकुष्टकाः ॥ ३१ ॥ ठहरता है वैसेही सुवर्ण के सेवन करने से अर्थ--इसी तरह कुलथी, वरक ( एक शरीर में विष भी नहीं रहता है किन्तु उसकी । आयु बढ़ जाती है, बिष दोष के नाश के प्रकार का चांवल है ) कांगनी,बल्लम और लिये जो विधि कही गई है वही भर अर्थात माट य दूध क विरु | मोट ये दूध के विरुद्ध है। संयोगादिज बिष में करना उचित है । विरुद्धअहार को विषतुल्पता ।। ___ + फल से फलमात्र का प्रहण नहीं हैं विरुद्धमपि चाहारं विद्याद्विषारोपमम् ।। नीचे लिखे हुए फल दृधके साथ विरुद्ध हैं अर्थ-विरुद्ध आहार विषके तुल्य होता यथा:-आम्राम्रातकलकुचकरमर्दमोचदन्तहै । जैसे विष और गर मृत्युकारक होते हैं। पालेवताक्षौडपनसनालिकेरदाडिमामल शठबदरकोशाम्रभव्यजांववकपित्थर्तितडीग वैसेविरुद्ध आहार भी प्राणनाशक है। कान्येवप्रकाराणि चान्यानीति ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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