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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ( ६८ ) www.kobatirth.org अष्टांगहृदये । सर्जकादिक्षार । क्षारः सर्वश्च परमं तीक्ष्णोष्णः कृमिजिल्लघुः । पित्तासृदूषणः पाकी छेद्यहृद्यो विदारणः । अपथ्यः कटुलावण्याच्छुक्रजः केशचक्षुषाम् अर्थ- सब प्रकार के खार अत्यन्त तीक्ष्ण अत्यन्त गरम, कृमिरोगनाशक, हलके, रक्तपित्त को दूषित करने वाले, पाकी, छेदी हृदय को अईित, ग्रन्थि को तोडने वाले हैं कटु और नमकीन होने से वीर्य, ओज, केश और चक्षुओं को अहित होते हैं । हींग के गुण | हिंगु वातकफानाहशूलघ्नं पित्तकोपनम् । कटुपाकरसं रुच्यं दीपनं पाचनं लघु । १५२ । अर्थ- हींग वायु, कफ, आनाह और शूल को नष्ट करती है, पित्त को प्रकुपित करती है, पाक और रस में, कटु है, रुचि वर्द्धक' अग्निसंदपिन, पाचन और लघु है । हरड के गुण | कषाया मधुरा पाके रूक्षा विलवणा लघुः । दीपनी पाचनी मेध्या वयःसंस्थापनी परा । उष्णवीर्या सरायुष्या बुद्धींद्रियबलप्रदा । कुष्ठवैवर्ण्यवैस्वर्यपुराण विषमज्वरान् ॥ १५४ ॥ शिरोऽक्षिषां हृद्रोग कामलाग्रहणीगदान् । सशोषशोफातीसारमेद मोहवमिक्रिमीन् १५५ श्वासकासप्रसेकार्शः प्लीहानाहगरोदरम् । विबंधं स्रोतसां गुल्ममूरुस्तभमरोचकम् १५६ हरीतकी जयेद्वास्तांस्ताश्च कफवातजान् अर्थ- हरड़ कसीली होती है, यह पाक में मधुर है रूक्ष है, इस में नमक को छोड कर शेष पांचों रस मौजूद है, यह हलकी, अग्निसंदीपनी, पाचनकर्ता, वुद्धिको बढाने बाली, अवस्था को अत्यन्त दृढ करनेवाली Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० ६ उष्णवीर्य, विरेचन करनेवाली, आयुकाहित करनेवाली, बुद्धि और इन्द्रियों में बल पहुंचाने वाली है । कुष्टरोग, मुखकी विवर्णता, स्वर का बिगडना, जीर्णज्वर, विषमज्वर, शिरोरोग, नेत्ररोग, पांडुरोग, हृद्रोग, कामला, ग्रहणीरोग, मुखशोष, सूजन, अतीसार, उदररोग, मोह, वमन, कृमिरोग, श्वास, आनाह, विषखांसी, प्रसंक, अर्श, प्लीहा, रोग, सांतों का अवरोध, गुल्म ऊरुस्तंभ, अरुचि तथा कफ और वात से उत्पन्न होने वाली अन्य व्याधियों को दूर् करदेती है । आपले के गुण । तद्वदामलकं शीतमलं पित्तकफापहम् । अर्थ - जो जो गुण हरड में कहे गये है बेही आंवले में भी है, केवल अन्तर इतना है कि हरड उष्णहै, यह ठंडा है तथा इस कारस खट्टा तथा पित्त और कफ का नाश करने वाला है । बहेड़े के गुण | कटु पाके हिमं श्यमक्षमीषश्च तद्गुणम् । अर्थ- बहेड़ा पाक में कटु, शीतवीर्य, और केशों की हितकारी है तथा हरड और आंवले से गुणोंमें कुछ न्यून है । त्रिफला के गुण | इयं रसायनवरा त्रिफलाऽक्ष्यामहा पहा १५ रोपणी career मेदो महकफास्रजित् । अर्थ- हरड़, बहेडा और आंवला इन तीनों को मिलाकर त्रिफला नामहै, यह उत्तम रसायन है, नेत्ररोगोंको हितकारी है व्रणको रोपण करती है, कुष्ठादिक त्वचा के रोग, व्रणका झरना, मेदरोग, प्रमेह, कफ, और रक्त रोगोंको दूर करती है । । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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