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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अ० ५ सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत । ( ४७ ) और तीक्ष्ण है यह मेह, पीनस और खांसी को दूर करदेता है । शुक्त के गुण । शर्करा का मद्य । रक्तपित्तकफोत्क्लेदि शुक्तं बातानुलोमनम् ॥ भृशोष्णतीक्ष्णरूक्षाम्लहृद्यं रुचिकरं सरम् ॥ बनाया शार्करः सुरभिः स्वादुद्यो नातिमदो लघुः ॥ दीपनं शिशिरस्पर्श पांडुदृक् कृमिनाशनम् । अर्थ - शर्करा ( चीनी ) अर्थ-शुक्त रक्त पित्त और कफ को हुआ मद्य सुगंधित, मधुर, हृदयको हितकारी बाहर की ओरं निकालने में प्रवृत करता है। और हलका होता है, इसमें अधिक नशा तथा बायु का अनुलोमन करनेवाला अत्यल नहीं होता । उष्णवीर्य, अत्यन्त रूखा, खट्टा, हृदय को हितकारी, रुचिबर्द्धक' रेचक' अग्निदीपन तथा शीतस्पर्श है । और पांडरोग, कृमिरोग, तथा नेत्ररोग को दूर करता है । अनेक प्रकार के कन्द मूल और फलादि को नमक और तेल में डालकर जो पतला पदार्थ कई दिन पीछे तयार होता है उसे शुक्त कहते है अथवा विगडा हुआ मद्य जब खट्टा होजाता है अथवा कोई और मिष्ट पदार्थ बिगड़ कर उठ आता है उसे भी शुक्त कहते हैं इसे भाषा में सिरका कहते हैं | अर्थ - खिजूरका मद्य अंगूरी शराबके तुल्य ही गुणवाला है, यह बातल और भारी होता है । गुडका मद्य । सृष्टमूत्रशकृद्वातो गौडस्तर्पणदीपनः । अर्थ-- गुड़का मद्य मल मूत्रका प्रवर्तक, घातबर्द्धक, तृप्तिकर्ता और अग्नि संदीपन है । Agra गुण | वातपित्तकरः सीधुः स्नेहश्लेष्मविकारहा ॥ मेदः शोफोदरार्शोघ्नस्तत्र पक्करसो वरः । अर्थ - ईख के रस से बनाये हुए मद्य को सीधु कहते हैं यह दो तरह का होता हैं । एक अपक्व दूसरा पक्व । अपक्व ईख से बनायाहुआ सीधु वात और पित्तको करता है, इससे स्नेहजनित ( त्रिकार घी और तेल के - अत्यन्त सेवन से हुए रोग ) स्नेह और कफ के विकार नष्ट हो जाते हैं । पक्व ईख के रस से बनाया हुआ सीधु मेद, शोध, उदररोग, और बवासीर को दूर करता है यह अपक्व ईख के मद्य की अपेक्षा उत्तम होता है ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्य शुक्त | गुडेक्षुमद्यमार्दीक शुक्तं लघु यथोत्तरम् ७८ ॥ कंदमूलफलाद्यं च तद्वद्विद्यात्तदाऽऽसुतम् । अर्थ- गुड के शुक्त से ईख का शुक्त हलका होता है और ईख के शुक्त से मद्य का शुक्त हलका है और मय के सें शुक्त द्राक्षा का शुक्त हलका होता है जो जो कन्दमूल, फल आदि जिस शुक्त में डाले जाते हैं वे भी उसी के तुल्य गुणयुक्त हो जाते है ॥ महुआ का मद्य । छेदी मध्वासवस्तीक्ष्णो मेहपीनसकासजित् डाकी का गुण | अर्थ - गहुआका मय छेदी ( मलभेदक ) शांडाकी चासुतं चान्यत्कालाम्लं रोचनंलघु For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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