SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org अष्टांगहृदये । ( ४६ ) अर्थ - नया मद्य भारी और त्रिदोष का रक होता है और पुराना मद्य त्रिदोषनाशक तथा हलका होता है । मद्यपानका निषेध | पेयं नाणोपचारेण न विरिक्तक्षुधातुरैः । नात्यर्थतीक्ष्णमृद्वल्पसंभारं कलुषं न च' ॥ अर्थ-गर्म पदार्थ के साथ, गर्म ऋतु में गरम प्रकृति वालेको अन्य गरम उपचारों के साथ मद्य पीना उचित नहीं है तथा विरेवन वाले और क्षुचापीडित को भी नपीना चाहिये । अति तीव्र अति मृदु, अल्प 1 संभार (चाट ) युक्त वा अस्वच्छ मद्य पीना भी उचित नहीं है । सुराके गुण | गुल्मोराशग्रहणोशोत्रहृत् स्नेहमी गुरुः । सुराऽनिलनी मेदोक्त्तन्य मूत्र कफावहा । अर्थ- सुरा नामक मद्य, गुल्म, उदररोग, बवासीर, संग्रहणी, और शोष रोगको नष्ट करता है यह स्निग्ध कारक, भारी, वातना - शक है और मेद, रक्त, दूध, मूत्र, और कफ को बढाने वाला होता है । वारुणी गुण | तद्गुणा वारुणी हृद्या लघुतीक्ष्णा निहन्ति च । शूलकासबमिश्वासविबंधाध्मानपीनसान् ॥ अर्थ- वारुणीनामक मद्यमें सुराके समान गुण होते हैं, यह हृदयको हितकारी, हलका, और तीक्ष्ण होताहै तथा शूल, खांसी वमन, श्वास, बद्धकोष्ठता, आध्मान ( अफरा ) और पीनस इनरोगों को दूर करता है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० ५ व्रणे पांड्वामये कुष्ठे न चात्यर्थे विरुध्यते ॥ अर्थ- बहेडेका मद्य अत्यन्त तीव्र मादक नहीं होता है, यह हलका और हितकारी होता है तथा ब्रण, पांडुरंग, और कुष्ठरोगमें अन्य मद्योंकी तरह अवगुणकर्ता नहीं होता है । वसुराके गुण | विष्टंभनी यवसुरा गुर्बी रूक्षा त्रिदोषला । अर्थ- यवसुरा विष्टंभी, भारी, रूक्ष, और त्रिदोषकारक होती है । अरिष्टके गुण | ter द्रव्यगुणोऽरिष्टः सर्वमद्यगुणाधिकः ॥ ग्रहणी पांडुकुष्ठाः शोफशोषोदरज्वरान् । हंति गुल्मक्रमिलीहान् कषायकटुवालः ॥ द्राक्षा रसका मद्य । मार्दीक लेखनं हृद्यं नात्युष्णं मधुरं सरम् । अल्पपित्तानिलं पांडुमेहार्शः कृमिनाशनम् ॥ अर्थ-- द्राक्षाके रसकामद्य ( अंगूरीशराब) लेखन ( कृशकारक ), हृदयको हितकर, मधुर, रेचक, तथा पांडुरोग, प्रमेह, अर्श और कृमिरोगनाशक है यह बहुत गरम नहीं होता है तथा अन्य मद्योंकी अपेक्षा पित्त और वायुको थोडा उत्पन्न करता है । खिजूरका मद्य । बहेडेका मद्य । नातितीव्रमदा लघ्वी पथ्या वैभीतकी सुरा । | अस्मादल्यांतरगुणं खार्जूरं वातलं गुरु । अर्थ - जिस द्रव्यसे अरिष्ट बनाया जाता है उस द्रव्यका गुण उसमें रहता है । मद्यके I संपूर्ण गुण इसमें विशेष रूप में रहते हैं । ग्रहणी रोग, पांडुरोग, कुष्ट, अर्श, सूजन, शोषरोग, उदररोग, ज्वर, गुल्म, ऋमिरोग, और तिल्ली इन सब रोगों को दूर करता है, यह कषाय, तीखा और बादी करनेवाला होता है । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy