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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत । (४५) वात रोग, कफ, उदर रोग, विषमज्वर को वसादि के गुण । दूर करता है तथा कमर, गुह्येन्द्रिय, कोष्ठ वसा मज्जा चवातघ्नौ बलपित्तकफप्रदौ ॥ और पीठ की सूजन और दर्द को नाश मांसानुगस्वरूपौ च विद्यान्मेदोऽपिताविवा अर्थ- सा और मज्जा ये दोनों वातनाकरता है ।। शक तथा वल, पित्त और कफ को उत्पन्न लाल अरंड के गुण । तीक्ष्णोष्णं पिच्छिलं विस्र रक्तैरंडोद्भवं त्वति करनेवाले होतेहैं तथा जिस प्राणीका जैसा अर्थ-लाल अरंड का तेल तक्ष्णि, उष्ण, मांस होताहै उसीके अनुसार गुणवाले बसा पिच्छिल और विशेष दुर्गन्धयुक्त होता है । और मज्जा भी होते हैं और इन्हीं दोनोंके सरसों का तेल। गुण मेदमें होतेहैं । शुद्ध मांसके स्नेहको वकटूष्णं सार्षपं तीक्ष्णं कफशुक्रानिलापहम् ।। सा अर्थात् चर्वी कहते हैं। लघुपित्तास्रकृत् कोठकुष्ठाझेव्रणजंतुजित्॥ मद्यके सामान्य गुण । अर्थ-सरसों का तेल कटु, उष्ण, तीक्ष्ण, दीपनं रोचनं मद्यं तक्षिणोष्णं तुष्टिपुष्टिदम् ॥ लघु, रक्तपित्त कारक, कफ शुक्र और वायु सस्वादुतिक्तकटुकमम्लपाकरसं सरम् । सकषायं स्वरारोग्यप्रतिभावर्णकृल्लघु ।। नाशक है । यह कोठ ( पित्ती ) कुष्ठ, नष्टनिद्राऽतिनिद्रेभ्यो हितं पित्तास्रदूषणम् । क्रमि और व्रण रोगों को दूरकरने वालाहै । कृशस्थूलहितं रूक्ष सूक्ष्मं स्रोतोविशोधनम्। बहेडे का तेल । | वातश्लेष्महरं युक्त्या पीतं विषवदन्यथा। आक्षं स्वादु हिमं केश्यं गुरु पित्तानिलापहम् । अर्थ-सब प्रकारके मद्य अग्निसंदीपन, अर्थ-बहेडेका तेल मधुर, ठंडा,सिर के | रुचिवर्द्धक, तीक्ष्ण, उष्णवार्य, मनको तुष्टि केशों को बढ़ाने वाला, भारी तथा वात और शरीरको पुष्टि देनेवाले हैं तथा कुछ कुछ पित्त को दूर करने वाला है। मधुर, तिक्त और कटु होते हैं ये पाक और रसमें खट्टे होते हैं । रेचक, ईषत् कषाय, तनीम का तेल । नात्युष्णं निबज तिक्तं कृमिकुष्ठकफप्रणुत् ॥ था स्वर आरोग्यता और कांतिको बढानेवा ले और हलके हैं । जिनको नींद न आती अर्थ-नीम का तेल अत्यन्त गरम नहीं हो पा जिनको अधिक नींद आतीहो उनके होता है । परन्तु कड़वा, कीड़ों को दूर लिये हित हैं, रक्त पित्तको दूषित करनेवाकरनेवाला, भारी कफ और कुष्ठ को विशेष रूप से दूर करता है ॥ ला, कृश और स्थूल मनुष्यके लिये हितका रक, रूक्ष, सूक्ष्म और रोमकूपोंका शोधन अलसी और कसूम का तेल। कर्ता है । युक्तिपूर्वक पीनेसे वातकफ नाशउमाकुसुभजं चोष्णं त्वग्दोषकफपित्तकृत् ।। कहै अन्यथा पीनेसे विषके समान होताहै । अर्थ-अलसी और कसूमके बीजोंका तेल नये पुराने मद्यके गुण । गर्म, तथा त्वग्दोष और कफपित्तको करतेहैं गुरु त्रिदोषजननं नवं जीर्णमतोऽन्यथा ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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