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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४०) अष्टांगहृदये। अ०४ गौके दूधके गुण । हलका थोड़ा रूक्ष, उष्ण और लवणरस अत्रगव्यं तुजविनीयरसायनम् ॥ २२ ॥ युक्त है । यह बादी, कफ, आनाह ( मलक्षतक्षीणहितंमेध्यंवल्यंस्तन्यकरंशरम्। मूत्र का अबरोध ), कृमिरोग, शोथरोग, श्रमभ्रममहालक्ष्मीश्वासकासातितृट्क्षुधः२३ जीर्णज्वरं मूत्रकृच्छ्रे रक्तपित्तं च नाशयेत् । उदररोग और ववासीर में हितकारी है । __ अर्थ- इनमेंसे गौका दूध जीवनको हित. स्त्रीके दुग्ध के गुण । कारी, रसायन, मेधवर्द्धक, बलकारक, साम्य | मानुषं वातपित्तास्टगभिघाताक्षिरोगजित् । तर्पणाश्चोतनैनस्यैः जनक, और रेचक होताहै । यह श्रम, भ्रम, | ___ अर्थ-स्त्रीका दूध, तर्पण, आश्चोतन मत्तता, अलक्ष्मी, श्वास, अत्यन्त पिपासा, और नस्यकर्म द्वारा प्रयुक्त किये जानेपर क्षुधा, जीर्णज्वर मूत्रकृच्छ्र और रक्तपित्तको बातपित्त, रुधिरविकार, अभिघातज नेत्ररोनाश करताहै । उरःक्षत रोगीके लिये तो गौका दूध बहुतही हितकारी होताहै। गों को नाश करता है असके दूधके गुण । भेड़ के दूध का गुण । अहृधतूप्णमाविकम्॥२७॥ हितमत्यन्यानद्रभ्योगरीयोमाहर्षहिमम २४ घातव्याधिहरहिध्माश्वासापत्तकफप्रदम् । __ अर्थ- भेसका दूध उन लोगोंके लिये अर्थ-भेड़का दूध हृदयको अहित, उ. बडा हितकारी है जिनकी तीक्ष्णाग्निहै औरणवीर्य, बात व्याधिनाशक है तथा हिच. नींद नहीं आतीहै | यह शीतवीर्य और गौ की, श्वास और कफपित्त रोगों को दुग्धकी अपेक्षा भारीहै । करता है। बकरीके दूधके गुण । हथनी और घोडी के दूध । अल्पांबुपानव्यायामकटुतिक्ताशनैर्लघु । हस्तिन्याःस्थैर्यकृत् आजंशोषज्वरश्वासरक्तपित्तातिसारजित् ५ बाढमुष्णं त्वैकशर्फ लघु ॥२८॥ __ अर्थ- बकरीका दूध हलका होताहै | शाखावातहरं साम्ललवणं जडताकरम् । क्योंकि वह स्वाभाविक ही कम जल पीतीहै ___अर्थ-हथनी का दूध देहमें स्थिरता बहुत डोलती फिरती है और कड़वे तीखे घास पते आदि खातीहै । बकरी का दूध धातु वीर्य, लघु, ईषत् अम्ल, लवणरस युक्त क्षयसे उत्पन्न शोषरोग, रक्तपित्त और अति- होता है । यह हाथ पांवकी बादी को दूर सार को दूर करताहै । करता है और शरीर में जड़ता उत्पन्न कऊंटनी के दूध के गुण । रता है । ईषदुक्षोष्णलवणमौष्ट कंदीपनलघु । कच्चे पक्के दूध के गुण । शस्तवातकफानाहकृमिशोफोदरार्शसाम् २६ पयोभिष्यंदिगुर्वाम युक्तयाशुतमतोऽन्यथा अर्थ--ऊंटनी का दूध अग्निसंदीपन, भवद्गरीयोऽतिशृतं धारोष्णममृतोपमम् । अत्यन्त उष्ण For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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