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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भ०२ सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत । भोजन में जलपीने के गुणागुण ।। हो जाता है । वातपत्तिक, पित्तश्लौष्मक, समस्थूलकशाभक्तमध्यांतप्रथमांबुपाः । और सान्निपातक रोगों में बहुत हितकारी __ अर्थ- भोजनके मध्य में जल पीने से होजाता है। परंतु गरम किया हुआ जल वासी मनुष्य सम शरीर अर्थात् न अत्यन्त कृश, होने पर त्रिदोषकारक हो जाता है । न स्थूल होता है । भोजन के अन्त में जल नारियल के जल के गुण । पीने से शरीर स्थूल हो जाता है इसी तरह | नालिकेरोइकं स्निग्धं स्वादु वृष्यं हिमंलघु । मोजन से पहिले जल पीने से शरीर कृश तृष्णापित्तानिलहरंदीपनंबस्तिशोधनम् ।१५। होता है। ___अर्थ-नारियलका जल स्निध, स्वादु, पौष्टिक, शीतल और हलका होता है तथा शीतल जल पान के गुण । तृषानिवारक, पित्त और यातनाशक तथा शीर्तमदात्ययग्लानिमूर्छाच्छर्दिश्रमभ्रान्१५ तृष्णोष्णदाहपित्तामविषाण्यंबु नियच्छति । मूत्राशयका शोधक होता है। अर्थ--शीतल जलपान करने से मदात्यय वर्षासु दिव्यनादेये पर तोये वरावरे । ( मद्यजनित रोग ) ग्लानि, मुर्छा, वमन, ___ अर्थ-वर्षाकाल में अन्तरीक्ष जल सबस्वेद, भ्रम (घुमेरी ) तृष्णा, उत्ताप, दाह, प्रकार के जलों की अपेक्षा उत्तम होता है परन्तु नदीका जल अति निकृष्ट होता है। रक्त पित्त और विषजनित रोग दूर होजातेहै । उष्णजल के गुण | . क्षीरवर्गः। दीपनपाचनंकव्यलपूष्णबस्तिशोधनम् ।१६।। | गब्यमाहिषमाजंचकारभंस्त्रैणमाविकम् ॥२०॥ हिमाध्मानाऽनिलश्लेष्मसद्यःशुद्धेनवज्वरे । • कासामपीनसश्वासपार्श्वरुक्षुचशस्यते ।१७॥ अर्थ- गौ, भेंस, बकरी, ऊंटनी, स्त्री, अर्थ--उष्ण जल अग्नि संदीपन, पाचक, | भेड़, हाथी, और घोड़ी का दूध इस तरह मूत्रशोधक, रुचिकर्ता और लघु होता है । आठ प्रकार का होताहै । तत्काल वमन विरेचनादि शोधन क्रियाओं के दूधके सामान्य लक्षण । पीछे, नवीन ज्वर में, हिचकी, बात और स्वादुपाकरसंस्निग्धमोजस्यंधातुवर्धनम् २१ कफजनित रोग, आध्मान ( अफरा) वातपित्तहरं वृष्यं श्लेष्मलं गुरु शीतलम् । खांसी, श्वास, नई पीनस, पसली का दर्द । प्रायः पयः आदि रोगों में गर्म जल हितकारक है। अर्थ- सामान्य रीतिसे सब प्रकार के ___ क्वथित शीतलजल के गुण। दूध मधुररसयुक्त और मधुरपाकी होतो अमभिप्यंदि लघुचतोयं कथितशीतलम् ।। (परिपाक के पीछे जो रस उत्पन्न होता है पित्तयुक्तहितंदोषे व्यूषितंतत्रिदोषकृत् १८४ उसे विपाक कहतेहैं ), तथा स्निग्ध, बल अर्थ--औटाया हुआ जल ठंडा होने पर कारक, धातुवर्द्धक, वातपित्तनाशक, वीर्योकफकारी नहीं होता है । यह बहुत हलका | त्पादक, भारी और ठंडा होताहै । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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