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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अ ०५ www.kobatirth.org सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत । अर्थ - कच्चा दूध श्लेष्मवर्द्धक और भारी होता है । युक्तिपूर्वक औटाया हुआ दूध ( आधा जल मिलाकर औटानेसे दूध शेष रहने पर ) हलका और कफनाशक होताहै । अत्यन्त औटाया हुआ दूध बदुत भारी होता है । धारोष्ण (थनसे खींचा हुआ गर्म दूध ) अमृत के समान गुणकारक होता है । दहीके गुण | अम्लपाकर संग्राहिगुरूष्णंधिवातजित् |३०|| भेदःशुक्रवल श्लेष्म पित्तरक्ताऽग्निशोफकृत् । रोविष्णुशस्तमरुचौशीत के विषमज्वरे ॥ ३१ ॥ पीनसेमूत्रकृच्छ्रे चरुक्षं तुग्रहणीगदे । नैवाद्यान्निशिनैवोष्णव संतोष्णशरत्सुन |३२|| नामुद्रसूर्पनाक्षौद्रतन्नाधृतसितोपलम् । नचानामलकंनापिनित्यंनोमंदमन्यथा ॥३३॥ ज्वरासृत्तिर्वा सर्पकुष्ठपांडुभ्रमप्रदम् । 1 अर्थ-दही अम्ल रस युक्त, अम्लपाकी, ग्राही, गुरु, उष्ण, और वातनाशक होता है । मेदाके रोग, वीर्य, बल, कफ, रक्तपित्त, अग्नि और सूजन का करनेवाला है । यह अरुचि रोग, शीतक, विषमज्वर, पीनस, मूत्र कृच्छ्र रोगों में हितकारी है, । रूक्षदही ( जिसका माखन निकाल लिया जाता है ) ग्रहणी रोग में बड़ा हितकारी होता है । रात्रिमें दही न खाना चाहिये; गर्म करके दही खाना वर्जित है । वसन्त, ग्रीष्म और शरद ऋतु में भी दही निषिद्ध है | मूंग की दालका यूत्र, शहद घृत, खांड़, आंवला इनमें से किसी एक के मिलाये बिना दही खाना उचित नहीं है । प्रतिदिन दद्दी खाना ठीक नहीं है । मंद ६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४१ ) दधिका खाना भी निषिद्ध है । इन नियमों पर दृष्टि न करके दही खाने से ज्वर, रक्तवित्त, विसर्प, कोढ, पांडु रोग और भ्रमरोग उत्पन्न हो जाते हैं । तक्र के गुण । तलघुकषायाम्लंदीपनं कफवातजित् ॥३४॥ शोhiraशग्रहणदोषसूत्रग्रहारुचीः । श्री गुल्म घृतव्यापरपांड्यामयान्जयेत् ३५ | अर्थ - तक्र लघु, कसेला, अम्लरसयुक्त दीपन और कफवातनाशक है । यह शोथ उदररोग, अर्शरोग, ग्रहणी, मूत्रावरोध, अरुचि, प्लीहा, गुल्मरोग, अत्यन्त घृतपानसे उत्पन्न हुए रोग, विषरोग और पांडुरोगों में हितकारी है । दही तोडके गुण | तद्वन्मस्तु सरंस्स्रोतःशोधिविष्टभजिल्लघु । अर्थ- दहीका तोड भी तक के समान ही गुणकारी होता है । किन्तु यह तक्रकी अपेक्षा अधिकतर मलमूत्र के मार्गों का शोधनकर्ता है, विष्टभनाशक तथा दस्तावर है और हलका विशेष होता है । नवनीतके गुण | नवनीतं नवंवृष्यशीतवर्णबलाग्निकृत् ॥ ३६॥ |संग्राहिवातपित्तासृक्क्षया शोदितकालजित् अर्थ - तत्काल निकाला हुआ माखन शुक्रवर्द्धक, शीतवीर्य्य, मलसंग्राहक, बल और वर्णका बढानेवाला, अग्निसंदीपन तथा वात, पित्त, रक्तविकार, क्षय, अर्श, अर्दित और खांसी इन रोगोंका नाश करनेवाला है । For Private And Personal Use Only दूधके माखन के गुण | क्षीरोद्भवं तुसंग्राहि रक्तपित्तानि रोगाजेत् ॥ ३७
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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