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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अष्टांगहृदये । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३६ ) 'नित्यं हिताहारविहारसेवी समीक्ष्यकारी विषयेष्वसक्तः । दाता समः सत्यपरः क्षमावा माप्तोपसेवी च भवत्यरोगः, ॥ ३७ ॥ अर्थ- जो नित्यप्रति हितकारी आहार बिहार का सेवन करता है । जो अच्छे बुरे का बिचार करके कर्ममें प्रवृत्त होता है जो इन्द्रियादि विषयोंमें असक्त रहना है जो दानी है सब जीवोंपर समान दृष्टि रखता है, सत्य बोलनेका वृतीहै, क्षमाशील है, जो ऋषिमुनि आदि ज्ञानवृद्ध मनुष्यों का सेवापरायण है। वह ॥ तोयवर्गः ॥ गंग के गुण | | रोगरहित रहता है । अर्थेभ्येष्वकृत प्रयत्नं कृतादरं नित्यमुपायवत्सु । जितेन्द्रियं नानुत्पत्तिरोगातत्कालयुक्तं यदि नास्ति दैवम् ॥ अर्थ- जो अलभ्य वस्तुओके प्राप्त करने में यत्न नहीं करता है, और लभ्यवस्तुओंके प्राप्त करनेमें नित्य उपाय करता है, जो जितेन्द्रियहै उसपर कोई रोग आक्रमण नहीं कर सकता है, परन्तु जो देव प्रतिकूल होजाय तो ऐसे आदमी को भी तत्काल कोई ऐसा रोग होजाता है । कालोनुकूलविषयामनोज्ञा धर्म्याः क्रियाः कर्म्मसुखानुवद्धि । सत्वंविधेयविशदाचबुद्धि भवन्तिधीरस्य सदासुखाय ॥ "जीवनं तर्पणं हृद्यं हादि बुद्धिप्रबोधनम् । तन्वव्यक्तरसं मृटंशीतं लघ्वमृतोपमम् । १ गगांव नभसो भ्रष्टं स्पृष्टं त्वर्केन्दुमारुतैः । हिताहितत्वे तद्भूयो देशकालावपेक्षते ॥२॥ अर्थ - अन्तरीक्ष से जो बर्षा का जल पडता है वह गंगबु कहलाता हैं यह जल ओजको बढानेवाला, तृप्तिकारक. हृदयको हितकारक आल्हादजनक, वुद्धि-प्रतिभाकार अर्थ-जिसका कालअनुकूल है अर्थात् हन मिथ्यादि योगों से रहित है रूप रसादि सव बिषय मनोज्ञ अर्थात् हीन मिथ्यादि योगों से रहित है. सम्पूर्ण क्रिया अपने अपने कर्म में तत्पर है, वमन विरेचनादि रूप कर्म स्वास्थ्य क, स्वच्छ, अव्यक्तरस, ( जिसमें मधुरादि छः रम व्यक्त नहीं ) मृष्ट ( स्वाद में प्रसन्नताकारक ), शीतल, लघु ( हलका ) और अमृतोपम ( त्रिदोषघ्न, धातुसाम्यकर आदि गुणों से युक्त ) है | करनेवाले है मन बुरे विचारों से शून्य है । बुद्धि विशद है ऐसा बुद्धिमान् मनुष्य सदाही सुखी रहती है और कभी रोगादि से पीडित नहीं होता !! इति श्री अष्टांगहृदये भाषाटीकार्या चतुर्थोऽध्यायः ॥ ४ ॥ पंचमोऽध्यायः । For Private And Personal Use Only अ० ४ Coom Met अथातोद्रवद्रव्यविज्ञानीयमध्यायं व्याख्यास्याम अर्थ- अब हम यहां से द्रवद्रव्य ( पतलेपदार्थ ) विज्ञानीय अध्याय की व्याख्या करेंगे । यह गंगबु चन्द्र, सूर्य और वायुके यो-ग से तथा भूमि और काल भेद से हितका -
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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