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अ०४
सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत ।
(३७)
री होजाता है अर्थात् जिस भूमिमें यह जल | जल पीना उचित है । जो वापी वा सरोवर गिरता है उसी भूमिके गुणागुण इस जलमें । ऐसे स्थान में बने हों जो पवित्र और चौडे प्राजाते हैं। इसी तरह कालभेदसे भी हों और जहां की मत्तिका काले वा सफेद गुणागुण होजाते हैं जैसे आश्विन मासमें । रंग की हो उस जलपर सूर्यकी किरणे पडती वर्षाका जल हितकारक तथा वर्षा और हों और वायु चलती हो, ऐसे स्थानका जल अन्यऋतुओं में अहित होता है ।
आन्तरीक्ष जलके समान गुणकारी होता है गांग तथा सामुद्र जलके लक्षण इसीलिये यह पीनेके योग्य है। येनाभिवृष्टममलं शाल्यानं राजतास्थतम् ।
न पीने के योग्य जल । अक्लिनमाविवर्ण च तत्पेयं गांगम् ।
न पिवेत्पंकशैवालतृणपर्णाविलास्तृतम् ।
अन्यथा ॥३॥ सामुद्रं तन्न पातव्यं मासादाश्वयुजाद्विना ।
सूर्यैदुपवनादृष्टंमभिवृष्टं धनं गुरु ॥ ६ ॥ अर्थ-चांदीके पात्रमें रक्खे हुए सफेद
फेनिलं जन्तु मत्तप्तं दंतग्राह्यतिशैत्यतः। शालिचांवलों के ऊपर वर्षाका जल गिरे
___ अर्थ--जो जल कीचड़, शैवाल, तृण और यदि इस बर्षाके जल से अन्न क्लिन्न
| और पत्ते आदि से व्याप्त और ढका रहता और मलीन नहो तो इस जलको गंगाजल
है, जिसपर सूर्य और चन्द्रमा की किरणें कहते हैं और यह पीनेके योग्य होताहै तथा
नहीं पडती है, पवन नहीं चलती है । जि
स पर गादे २ भारी झाग आ रहे हों, जि. स्नान और अवगाहनमें भी यह हितकर है। इससे विपरीत अर्थात् यदि शाली अन्न
समें बहुत प्रकार के कीडे हों, जो बहुत क्लिन्न वा मलीन होजाय तो वह सामुद्र
उष्ण हो, जो अत्यन्त ठंडा होने के कारण जल कहलाता है यह जल पीने के योग्य
| दांतों को जकड़ देता है अर्थात् निष्काम नहीं होता । किन्तु आश्विन मासमें सामुद्र
कर देता है, ऐसा जल पीने के योग्य जल पीने में कोई दोष नहीं है क्योंकि
| नहीं है। काल के स्वभाव से पथ्य होता है ।
अपेपआंतरीक्ष जल । गांगजल के अभाव में कर्तव्यता। | अनार्तवं च यदिव्य मार्तवं प्रथमं च यत । ऐंद्रमंबुसुपात्रस्थमविपन्नंसदापिवेत् ॥ ४॥
लूतादितंतुविण्मूत्रविषसंश्लेषदूषितं । तभावे च भूयिष्ठमंतरिक्षानुकारि यत् । अर्थ- वर्षा ऋतुके जलके सिवाय अन्य शुचिपृथ्वासते श्वेते देशेऽर्कपवनाहतम् ।५। ऋतुका जल न पीना चाहिये । बर्षाकालमें __ अर्थ--चांदी आदि के उज्वल पात्र में भी पहिली वृष्टिका जल पीनके योग्य नहीं रक्खा हुआ आंतरक्षि जल जो किसी तरह होता और जिस जलमें मकडी आदि विषैले से बिगडा न हो सदा पीना चाहिये । यदि जीवों के तंतु, मल, मूत्र मिले हों वा उनके आंतरीक्ष जल न मिल सकता हो तो वैसे । विष से दूषितहो वह भी पीने के योग्य ही गुणों से युक्त स्वच्छ और निर्मल अन्य नहीं होताहै ।
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