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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२८) अष्टांगहृदये। तर केलेके पत्ते, कल्हार, कमलतन्तु, और हस्तमें धारण किये हुऐ इतस्ततःपादाविक्षेप पद्म पुष्पोंसे रचित शय्यापर सूर्यतापात व्यक्ति करती हुई कामिनीगण कमलपरिपूरित सजीव मध्यान्ह कालके समय शयन करै । अथवा | सरोबरके सदृश उपरोक्त हर्म्यतलस्थ व्यक्ति धारागृहमें शयन करै । धारागृह उसे कहतेहैं | के शारीरिक और मानसिक तापोंको दूर जहा फव्वारे चलतहों । लकडी वा धातुका | करती हैं। फव्वारा जिसका मुख स्त्रीके स्तन, वा हाथ बर्षाचर्या । वा मुखके सदृश हो और उसमेंसे निरंतर "आदानग्लानवपुषामग्निः सन्नोपिसीवति । उशीरका सुवासित जल निकले उसे पुस्तबर्षासु दोषैःदुप्यति तंबुलंबांबुर्देऽबरे ॥ ४२ कहते हैं। सतुषारेण मरुता सहसा शीतलेन च ग्रीष्म की रात्रिका विधान । भूवाष्णाम्लपाकेन मलिनेनचवारिण॥४३॥ वह्निनैव च मंदन तेष्वित्यन्योन्य दायषु । "निशाकरकराकीर्णसौधपृष्ठेनिशासुच॥३७॥. आसना स्वस्थचितस्य चंदनाद्रस्य मालिनः। | "| भजेत्साधारणसर्वमूष्मणस्तेजनंचयत्॥४४॥ निवृत्तकामतंत्रस्य सुसूक्ष्मतनुवाससः॥३८॥ अथे- आदान अर्थात् उत्तरायणकालमें जलाद्रोस्तालवृतानि विस्तृताःपमिनीपुटाः । मनुष्यका देह क्लान्त होजाताहै और कालके उत्क्षेपाश्चदूत्क्षेपाजलवाहिमानिलाः३९। स्वभावसे अग्निभी मंद पडजातीहै वह अग्नि कर्पूरमाल्लंका माला हाराः सहरिचंदनाः। वर्षाऋतु वातादिक दोषोंके कारण और भी अनोहरकलालापाःशिशवःसारिकाशुकाः।४० मृणालवलयाकान्ता प्रोत्फुल्ल कमलोज्ज्वला मंद पडजातीहै । और इसी वर्षाऋतुमें आजंगमाइवपदमिन्योहरंतिदयिताक्लमम्।४। काश बादलोंसे ढक जातेहैं, वायु जलकणोंसे अर्थ-- रात्रिके समय कामतंत्रसे निवृत्तहो मिलने के कारण एकाएक शीतल होजाताहै स्वस्थचित्तसे ऐसे मकान की छत पर बैठे तथा पृथ्वी की गर्मीको लियेहुऐ जलभी कीजहां चन्द्रमा की चांदनी छिटक रही हो, चरयुक्त और मलीन होजाताहै । इन कारणों . वहां शरीर पर चन्दन लगावै गलेमें पुष्पोका से विपाक खट्टा होता है और अग्नि मन्द हार डाले, बहुत पतले वस्त्र ओढे । जलसे पडजातीहै इन्हीं कारणोंसे वातादिक तीनों भीगे हुऐ ताड़के अथवा कमलके पत्तोंक दोष वर्षकालमें एक साथ कुपित होजातहैं पंखेसे मंदी मंदी हवा होताहो । ये पंखे ऐसे इसतरह एक दूसरे को दूषित करनेवाले हों जिनके हिलाने में कुछ परिश्रम न पडता दोषोंका शमन करनेके लिये साधारण तथा हो, छोटे छोटे जलविन्दु उनमेंसे उडतहों अग्निवर्द्धक उपायों को करना चाहिये । कपूर और मोगराके फूलोंका हार, हरिचन्दन बर्षाऋतु में भोजनादि विधि । चर्चित मुक्ताहार, मनोहर अव्यक्त मधुरभाषी आस्थापनंशुद्धतनुर्जीर्णधान्यरसान्कृतान्,,। शिशु, शुक और शारिका पक्षी, विकसित जांगलंपिशितंयुषान्मध्वारिष्टं चिरंतनं॥४५॥ कमलवत कमनीय कमलकंकणको दक्षिण मस्तुलौवर्चलाढ्यं वा पंचकोलावचूाणतम् , For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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