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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत । मिलाकर केला और फनसके पत्तों में निकालकर मिट्टी के प्याले में भर चाहिये । भर कर पीना इन सबके लक्षण अन्य ग्रन्थों में इस प्रकार लिखे हैं " सितामध्वादिमधुरारागास्त- | त्राच्छकांतयः । ते साम्ला: खांडवा लेह्यो: पेयाश्वांशुकगालिताः । स्वाद्वम्लपटु कष्ट्वाद्याः प्रलेहास्तत्र खांडवाः । गुडदाडिममांसाद्यारा गावांशुक गालिताः । हृद्यावृष्यारुचिकरा ग्राहिणो रागखांडबा इति । तथा । द्राक्षामधूकखर्जूरकाश्मर्यः सपरूषकाः तुल्यांशैः कल्पि - तं पूतं शीतं कर्पूर बासितं । पानकं पंचसा - राख्यं दाहनृष्णानिवर्तकम् । अन्यत्र चोक्तम् यथा | गुडदाडिमादियुक्त विज्ञेया रागखांडवा : त्रिजातमरिचाद्यैस्तु संस्कृताः पानकास्तथेति । अर्थात् राग और खांडव पीने तथा चाटने के पदार्थ होते हैं । शक्कर शहद आदि मधुर द्रव्यों का राग बनता है, इसी में इमली की खटाई डालने से खांडव बन जाता है । जो इनको गाढा रक्खै तो चाटने के योग्य होते हैं और पानी डाल कर वस्त्र में छान कर काम में लाया जाय तो पेय होते हैं । राग और खांडव हृद्य वृष्य रुचिकर और गाही होते हैं । दाख, मुलहटी, खिजूर खंभारी और परुपक समान भाग लेकर मसल कर छान ले और कर्पूरादि द्रव्यों से सुगंधित करले तो यह पंच साराख्य पानक कहाता है । यह दाह और प्यास मिटाता है दही, कुंकुम चीनी, शहत और कपूर को मिलाकर वस्त्र में छान लेने से रसाला वनती Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२७ ) ग्रीष्म में जलपान | " पाटलावासितं चांभः सकर्पूरं सुशीतलम् अर्थ - पाटल के पुष्पोंसे सुवासित और कपूर से सुगंधित मिट्टी के पात्रमें भरा हुआ जल पीने के योग्य है । ग्रीष्म में रात्रि भोजन । शशांककिरणान् भक्ष्यान् जन्यां भक्षयपिबेत् ससितं माहिषं क्षीरं चंद्रनक्षत्रशीतलम्,,, । अर्थ - रात्रि के समय शशांककिरण (कपूरनालिका ) नामक भक्ष्य पदार्थ खाकर ऊपरसे मेंसका दूध पीवै । यह दूब चन्द्रमा और तारागण की ज्योंतिके नीचे रखकर अच्छी तरह ठंडा कर लिया जाय और इसमें सफेद चीनी डाली जाय । For Private And Personal Use Only ग्रीष्म का मध्यान्ह काल | अभ्रंक महाशाल तालरुद्धोष्णरश्मिषु ॥ ३३॥ वनेषु माधवी लिष्ट द्राक्षा स्तवकशालिषु । सुगंधिहिमपानीयसिच्यमानपटालिके ॥३४॥ कायमाने चिते चूतप्रवालफललुंविभिः । कदलीदल कहारमृणाल कमलोत्पलैः ॥ ३५ ॥ कल्पिते कोमलैस्तल्पे हसत्कुसुमपल्लवे । मध्यदिने तापातः स्वयाद्वारागृहेऽथवा पुस्तस्त्रीस्तन हस्तास्यप्रवृत्तोशीरवारिणि । अर्थ- जिस स्थान में मेघों का स्पर्श करने वाले अर्थात् बड़े ऊंचे ऊंचे शाल और ताडके वृक्षोंले सूर्य की किरणें रुकी हुई है । जहां दाखों के गुच्छा में माधवी लता गुथरही है ऐसे उपवनमें बांसोंका मंडप बनावे, उस मंडप के चारों ओर परदे पड़े हों जिनपर पानी सींचा जाताहो और उस मंडपके चारों ओर आम के वृक्षोंके फल फूल और पत्ते पवन से झोटे ले रहे हों ऐसे मंडपके भी
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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