SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत । घरके भीतर जो घर होता है गर्भगृह और पृथ्वी के नीचे जो घर होता है उसे भूगृह वा पातालघर कहते हैं । शिशिरचर्या । “अयमेव विधिः कार्यः शिशिरेऽपि विशेषतः तदाहि शतिमधिकं रौक्ष्यं चादानकालजम् । अर्थ- हेमन्तकालकी अपेक्षा शिशिरऋतु जाड़ा विशेष पडता है, आदानकालकी रूक्षता विशेष होती है, इसलिये इस ऋतु में हेमन्त ऋतु की कही हुई दिनचर्याका अधिकरूपसे व्यवहार करना उचित है । वसन्तचर्या । कफश्चितो हि शिशिरे वसंतेऽशुतापितः हत्वाऽनिं कुरुते रोगानतस्तं त्वरया जयेत् । अर्थ - शिशिरऋतु में मधुर और स्निग्व भोजनों के करने से शरीर में कफ अतिशय संचित होजाताहै और वही वसंत ऋतु सूर्य के प्रभावसे पिघलकर जठराग्निका नाश करता है और रोगोंको उत्पन्न करता है इससे करुको जीतने का शीघ्र उपाय करना चाहिये । कफ जीतने के उपाय । तीक्ष्णैर्वमननस्याद्यैर्लघु रूक्षैश्च भोजनः । व्यायामोद्वर्तनाघातैर्जित्वा श्लेष्मा णमुल्बणम् खातोऽनुलितः कर्पूरचंदनागुरुकुंकुमैः । पुराणयवगोधूमक्षौद्र जांगल शूल्यभुक् । २०१,, सहकाररसोन्मिश्रातास्वाद्य प्रिययार्पितान् । प्रियास्य संगसुरभीन् प्रियानेत्रोत्पलाकितान् । सौमनस्यकृतो हृद्यान्ययस्यैः सहितः पिवेत् । निर्गदानास वारिसीधुमाळ किंमाधवान् २२ अर्थ - तीक्ष्ण वमन और तीक्ष्ण नस्यादि ( नस्यविरेचन ) लबै । हलके और रूखे भोजन करें, कसरत, तैयमन ( उव ४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २५ ) टना ) शरीरमर्दन आदि से बढे हुए कफका नाश करे । पीछे स्नानकरके चन्दन, कपूर, अगर, कुंकुम आदि सुगंधित द्रव्यों का लेपन करै तदनन्तर पुराने जौ या गेंहूं की रोटियां खाय, शहत और जांगल देश के पशु पक्षियों के मांस का शूल्य कांटे पर भुना हुआ मांस अर्थात् कवच ) सेवन करे पीछे उत्तम सौरभयुक्त आम्ररसमिश्रित, अपनी प्रिया से आस्वादित ( चाखा हुआ ), तथा अपनी प्रिया के ओष्ठों के सर्श से सुगन्धीकृत और अपनी प्रणयिनी के नेत्र कमलों से प्रतिविम्वित प्रिया के नेत्रों के समान ललाई लिये हुए ) आसव, अरिष्ट, सीधु ( ईके रसका बना हुआ ), माक ( द्राक्षारस ) और माधव ( शहत का वना हुआ ) आदि प्रिया के हाथ से दिये हुए निर्दोष मद्य समान अवस्थावले बन्धु बान्धत्र और मित्रों के साथ बैठकर प्रसन्न चित्त होकर पान करे । अन्य उपाय | "garia सria मवु जलांबु वा । अर्थ- सोंठका काथ, असन चन्दनादि डालकर सिद्ध किया हुआ जल, मधुमिश्रित जल अथवा मोथा डालकर पकाया हुआ जल पान करै 1 For Private And Personal Use Only वसन्त का मध्यान्हकाल | दक्षिणानिलशीतेषु परितो जलवाहिषु,, |२३| अदृष्टनष्टसूर्येषु मणिकुट्टिमकांतिषु । विचित्र पुष्पवृक्षेषु काननेषु सुगंधिषु । परपुष्टविष्टेषु कामकतभूमिषु ॥ २४ ॥ "गोष्ठी कथाभिश्चित्राभिर्म व्याहं गमयेत्सुखी
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy