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(२४)
अष्टांगहृदये।
कहा है तथापि भूखेको पहिले भोजन करना रस अथोत् मधुराम्ललवण रसों के बने हुए चाहिये" कहाभाहै "आहार काले संप्राप्ते यो- पदार्थ, मोटे पशुओं का मांस, गुड़का बना न के वुभुक्षितः । तस्य सीदति कायाग्नि हुआ मद्य, अच्छसुरा ( सुरामंड ) मदिरा निरंधन इवानल इति"
| का सेवन करै । गेंहूं, साठीचांवल, उरद, ___ अभ्यंगादि ।
ईख, और दूध के वनाये हुए अनेक प्रकार वातघ्नतैलैरभ्यंग मूनि तैलं विमर्दनम् ।। के सुन्दर पदार्थों का भक्षण करै । नया नियुद्धं कुशलै सार्धपादाघातं च युक्तितः १० अन्न, शुद्धमांसका स्नेह जिसे चर्बी कहते हैं, ___ अर्थ-शीतकाल में वातनाशक बलातैला
और तेलका सेवन करै । शौ वादिकक्रिया दिका शरीर पर मर्दन करे । मस्तक पर विशेष अर्थात हाथ पांव के धोने के लिये गरम जरूपसे तैल लगावै । कुश्ती लड़नेवाले प्रवीण
ल काम में लावै । गलीचा, मृगछाला, रेशमी मनुष्यके साथ कुश्ती कर और युक्तिपूर्वक
वस्त्र अथवा कोमल कम्बल बिछाकर हलका पादाघात ( एकप्रकार की पांवोंकी क परतहै )
और गर्म वस्त्र वा रुई की सौड़ ओढकर करै । युक्तिपूर्वक इस लिये कहाहै कि जब
सोवे । सुहाती हुई धूप में बैठे । थोड़ा पतक शरीर में थकावट नहो तबतक इन का. सीनाले, और सदा जूते पहनता रहै । मोंको करै ।
स्त्री सेवन । स्नानादि ।
पीवरोशस्तनश्रोण्यः समदः प्रमदाः प्रियाः। कषायापहृतस्नेहस्ततः स्नातो यथाविधि । हरंति शीतमुष्णांग्यो धूपकुंकुमयौवनैः ॥१५॥ कुंकुमेन सदर्पण प्रदिग्धोऽगुरुधूपितः ।११। अर्थ- जिनके ऊरु ( जंघा ) और श्रोणि
अर्थ-कसरत करने के पीछ लोधादिक- देश पुष्ट, स्तन पानोन्नत, हों जो जवानी षाय द्वारा शरीरकी चिकनाई दूर करके विधि के मदसे मत्त, प्रेमासक्त, अगर आदिके धूआं पूर्वक स्नान करै, पीछे कुंकुम कस्तूरी का
से धूपित, कुंकुमआदिसे लेपित, तरुणाई की शरीर पर लेप करके अगरकी धूपसे शरीरको
| गर्मीसे गरम विलासिनी कामिनी हेमन्तके धूपितकरै अर्थात् अगरकी लकड़ी अग्निमें ज
शीतको हरतीहै अर्थात् इस कठिन शीतकाल लाकर उसका धुंआं ग्रहण करै । में ऐसी स्त्रियों का सेवन उचितहै । भोजनादि ।
रहने का घर । रसानस्निग्धान पलंयुष्टगोडमच्छसुरसुराम् अंगारतापसंतप्तगर्मभूवेश्मचारिणः । गोधूमपिष्टमाषेनुक्षीरोत्थविकृतीःशुभाः १२
शीतपारुप्यजनितो नदोषो जातु जायते १६ नवमन्नं वसा तैलं शौवकार्ये सुखोदकम् ।
___ अर्थ- जो हेमन्तकालमें प्रज्वलित अंगारों प्राधाराजिनकौशेयप्रवेणीकोचवास्तृतम् १३ उष्णस्वभावैलेधुभिः प्रावृतः शयनं भजेत् ।
से संतप्त गर्भगृह अथवा भूगर्भ में रहते हैं युक्त्याकिरणान् स्वेदं पादत्राणंच.सर्वदा।। उनके कठोर जाड़े से होनेवाला कोई रोग
अर्थ--स्नानादिसे निवृत होकर स्निग्ध उत्पन्न नहीं होसकताहै ।
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