SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत । (२३). - बलका आदान और विसर्ग काल । | ऋतुपरता से बल की प्राप्ति । तस्मिन् हत्यर्थतीक्ष्णोष्णरुक्षामार्गस्वभावतः शीतेऽग्रथं वृष्टिधर्मेऽल्पं बलं मध्यंतु शेषयोः। आदित्यपवनःसौम्यान्क्षपयंतिगुणान् भुवः३ अर्थ-शीतकाल अर्थात् हेमन्त और शितिक्तः कषायःकटुको बलिनोऽपरसाक्रमात्। शिर में उत्तम बल की प्राप्ति होती है । वर्षा तस्मादादानमाग्नेयम् और ग्रीष्म में अल्पबल तथा शरद और बसंत ___ ऋतवो दक्षिणायनम् ॥४॥ वर्षादयोविसर्गश्च यद्दलं विसृजत्ययम् । काल में मध्यम बल की प्राप्ति होती है। अर्थ--उत्तरायण काल में सूर्य का मार्ग बद- हेमंत में जठराग्नि का प्रावल्य । लेने के कारण से सूर्य और पवन अत्यन्त यलिनः शीतसंरोधाद्धमंते प्रबलोऽनलः ।। प्रचंड, गर्म और रूक्ष हो जाते हैं और पृथ्वी भवत्यल्पंधनो धातून् स पचेद्वायुनेरितः । के सौम्य गणों को नष्ट कर देते हैं और क्रम ___अर्थ -हेमंत ऋतु में बलवान पुरुष की से इन तुओं में तिक्त, कषाय और कटु ये जठराग्नि प्रबल होजाती है, क्योंकि बाहर तीन रस बलवान् होजाते हैं अर्थात् शिशिर चारों ओर शीत रहने के कारण अग्नि भीतर में तिक्त, वसंत में कषाय, और ग्रीष्म में कटु । रुकी रहती है । इसलिये इस समय में जो रस वलवान् होजाते हैं । इस कहे हुए हेतु थोड़ा आहार मिले तो वह आहार रूप से बलका आदान अग्निरूप है, तथा इसके ईंधन वायुप्रेरित अग्नि की प्रबलता से जलकर विपरीत वर्षा, शरद और हेमन्त ये तीन प्रत धातुओं को जला देता है । दक्षिणायन कहलाती हैं । इन तीन ऋतुओं हेमन्त में सेवनीय रस । में पुरुष का बल पीछा आता है इसी से इस | अतोहिमेऽस्मिन्सेवेतस्वादम्ललवणानसान् अर्थ-इसलिये हेमन्त ऋतु में धातु पाक को विसर्गकाल कहते हैं। । विरोधी मधुर अम्ल और लवण रसोंका सेवन बलविसर्ग का कारण । सौम्यत्वादत्र सोमो हि बलवान् हीयते रविः । करता रहै । मेघवृष्टयानलैः शीतैः शांतताये महीतले। हेमन्त की दिनचर्या । स्निग्धाश्चेहाम्ललवणमधुरा बलिन रसाः६ दानिशानामेतर्हि प्रातरेव बभक्षितः । अर्थ--मेघ की वृष्टि और ठंडे पवन के अवश्यकार्य संभाव्य यथोक्तं शीलयेदनु ।। चलने से पृथ्वी पुष्ट और शीतल होजाती है अर्थ-हेमन्त ऋतु में रात्रि बड़ी होतीहै और इस शीतलता के कारण चन्द्रमा वलवान् | इस लिये प्रातःकालही भूख लगती है । भुक्त होजाता है और सूर्य हीनता को प्राप्त होता द्रव्य प्रायः अजीर्ण नहीं रहताहै, अतएव प्राहै और इस ऋतु में खट्टे खारे और मधुर रस तःकालही मलमूत्र त्याग आदि अवश्य कार्य वलवान् होजाते हैं जैसे वर्षा में खट्टा, शरद करके दिनचर्या में कहहुए दन्त धांवन, अमें लवण और हेमंत में मधुर रस बलवान्। भ्यंगादि संपूर्ण कामोंको करै। आवश्यक काहोजाते हैं। | मोंको करके पीछे यथोक्त कामकरै; यद्यपि ऐसा For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy