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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म.३७ उत्तरस्थान भाषाटीकासमैत । सहूषितं च वस्त्रादिदेहे पृक्तं विकारकत्। | श्वास और भ्रम ये सब लक्षण प्रकाशित ___ अर्थ-मकडी नाभि के ऊपर काटती | होते हैं । है, अन्य कीडे नाभि से ऊपर और नीचे पंचमदिन का प्रकार । दोनों जगह काटते हैं । इनके विषों से विकारान् फुरतेतांस्तानपंचमेविषकोपजान् दूषित हुआ वस्त्र देहके लगजाने पर विकार | अर्थ-पांचवें दिन विषके प्रकोप स ऊपर कहे हुए सब रोग पैदा होजाते हैं। करता है । छटे सातवें दिन का प्रकार । . मकडीके प्रथमदिन का लक्षण । षष्ठे व्याप्नोति माणि सप्तमे हंति जीवितम्। दिनार्ध लक्ष्यते नैवं देशो लूताविषोद्भवः ।। सूचीब्यवदाभाति ततोऽसौप्रथमेऽहनि । अथे-छटे दिन सब मर्मस्थानों में विष अध्यक्तवर्णःप्रचलः किंचित्कंडूरुजान्वितः।। फैल जाता है और सातवें दिन रोगी मर __अर्थ-मकडी का विष चार पहर तक जाता है । दिखाई नहीं देता है, फिर उसमें सुईके तीक्ष्णविष के उक्तलक्षण । छिदने कासा चिन्ह अव्यक्तवर्ण, चलायमान | इति तीक्ष्णं विषं मध्यं हीनं च विभजेदतः तथा कुछ खुजली और वेदना से युक्त अर्थ-इन लक्षणों से तीक्ष्ण, मध्यम होता है। और हीन विष की विवेचना करनी चाहिये। दूसरेदिन का लक्षण। विषशमनका काल । द्वितीयेऽभ्युनतोतेषु पिटकैरिय पाचितः । एकविंशतिरात्रेण विषं शाम्यति सर्वथा । व्यक्तवर्णो नतो मध्ये कंडूमान् ग्रथिसनिभः अर्थ-इक्कीस दिन में विषकी सर्वया अर्थ-दूसरे दिन दंशस्थान के किनारे | शांति हो जाती है । बहुत ऊंचे, बीचमें नीचा, फुसियों से मकहीका दंशोधरण । व्याप्त, अव्यक्तवर्ण, खुजली से युक्त और अथाशुलूतादष्टस्य शस्त्रेणादशमुद्धरेत् । गांठके आकार का होता है। दहेच्च जांववौष्ठाद्यैर्न तु पित्तोत्तरं दहेत् । तीसरे दिन का प्रकार । ___ अर्थमंगलाचरण करके मकडी के दंशके तृतीये सज्वरो रोमहर्षकृद्रतमंडलः । । चारों ओर काटकर दंशको निकाल डाले। शरावरूपस्तोदाढयो रोमकूपेषु संत्रवः। और जांववाष्ठ यंत्रसे दंशस्थान को दग्ध कर ___अर्थ-तीसरे दिन दंशस्थान लाल,सरवे । देवै किंतु पित्तोत्तर दंश को दग्ध न- करना की आकृति कासा होजाता है, तथा ज्वर चाहिये। रोमांच, सुई छिदने कीसी पीडा, और रोम दंशछेदनका निषेध । कू से स्राव होने लगता है। कर्कशं मिन्नरोमाणं मर्मसंध्यादिसंश्रितम् । चतुर्थदिन का मकार । प्रसृतं सर्वतो दंशं न छिंदीत दहेन च । महाश्चतुर्थ श्वयथुस्तापश्वासभ्रमप्रदः। अथे-जो दंश कर्कश, भिन्नरोम, मर्म .. अर्थ-चौथे दिन अत्यन्त सूजन,संताप, । और संधियों में श्रित तथा चारों ओर को For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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