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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (९४८) मष्टांगहृदय । म. ३७ - व्याप्त हो उसे न काटना चाहिये, न दग्ध | अर्थ--गोवर का रस, शर्करा, घी और करना चाहिये । शहत, यह औषध पूर्ववत् गुणकारी है । दग्धंदंशका लेप। | मंदर और गंधमादन । लेपयेहग्धमगदैर्मधुसैंधवसंयुतैः ॥ ६८॥ | अपामार्गमनोम्हालादार्याध्यामकंगैरिकैः । सुशीतैः सेचयेच्चानु कषायैः क्षीरिवृक्षः नतैलाकुष्टमरिचयष्टयाधृतमाक्षिकैः॥ __ अर्थ-दग्ध देश पर शहत और सेंधेनमक, अगदी मंदरो नाम तथाऽन्यो गंधमादनः। नतरोधवचाकद्वीपाडैलापत्रकुंकुमैः ॥७४॥ से मिलीहुई भगद का लेप करे । तत्पश्चात् ___ अर्थ--ओंगा, मनसिल, हरताल, दारुहदूधवाळे वृक्षोंके शीतल कषायका परिषेक करे लदी, रोहिषतृण, गेरू, तगर, इलायची, कूठ, रक्त हरणादि । सर्वतोपहरेद्रक्तं शृंगाधैः सिरयाऽपि वा। कालीमिरच, मुलहटी, घी और शहत इनसे सेकालेपास्ततःशीताबोधिश्लेष्मातकाक्षकैः बनाई हुई दवा को मदर कहते हैं। तथा अर्थ-सींगी आदि लगाकर वा फस्द तगर, लोध, बच, कुटकी, पाठा, इलायची, खोलकर सब तरह से रक्त निकालना चाहिये। भोजपत्र और कुंकुम । इनसे बनाया हुआ तत्पश्चात् पीपल, लिहसोडा और बहेडा इन , अगद गंधमादन कहलाता है। का ठंडा लेप और परिषेक काम में लाना बिषनाशक बिशोधन ॥ चाहिये । | विषघ्नं वहुदोषेषु प्रयुजीत विशोधनम्। पद्मक नाम अगद। अर्थ--बहुत दोषों से व्याप्त विषार्त व्यक्ति फलिनीद्विनिशाक्षौद्रसपिभिः पद्मकाहयः। को विषनाशक वमन विरेचनादि शोधन देना अशेषलूता कीटानामगदः सार्वकार्मिकः । चाहिये । __ अर्थ-प्रियंगु, हलदी, दारुहलदी, शहत कफ में वमन ॥ और घी । यह औषध सब प्रकार की मकडी यष्टयाहमदनांकोल्लुजालिनीसिंदुवारिकाः॥ और कीडों के विषमें हितकारी है। इसका कफे श्रेष्ठांबुना पीत्वा विषमाशु समुद्धमेत् । नाम पदमक है । यह सेक लेपादि सब प्रकार ___अर्थ-कफ की अधिकता में मुलहटी, से व्यवहार में लाई जा सकती है। मेंनफल, अकोल, देवताड़, सभालू । इन. चपक नाम औषध । सब द्रव्यों का तंडुल जल के साथ पान हरिद्राद्वयपत्तंगमंजिष्ठानतकेसरैः ॥ ७१॥ | कराके विष की वमन करादेनी चाहिये । सक्षौद्रसर्पिः सवैस्मादधिकश्चंपकावयः। उक्त रोग में विरेचन ॥ . ___ अर्थ-हलदी, दारुहलदी, पतंग, मजीठ, | शिरीषपत्रत्वङ्मृलफलं घांकोल्लमूलवत् ॥ तगर, केसर, शहत और घी, यह अगदविरेचयेच त्रिफलानीलिनीत्रिवृतादिभिः । पत्रक नाम औषध से भी अधिक गुणकारी है अर्थ-सिरस के पत्ते,छाल, जड़ और फल अन्य प्रयोग। तथा अंकोल इन द्रव्यों को तंडुल जल के साथ तनोमयनिष्पीडाशर्कराघृतमाक्षिकैः ७२।। पान कराके धमन करावे । अथवा त्रिफला, For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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