________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(९१०)
अष्टांगहृदय ।
म.
अर्थ-पित्त रक्त के प्रकोप से लिंग की
वर्जितरोग । त्वचा पकजाती है, इस से इसे त्वक्पाक, मांसोत्थमबुंदं पाकं विधि तिलकालकान रोग कहते हैं । इस में ज्वर और दाह
चतुरो वर्जयेदेतांश्लेषांश्छीघ्रमुपाचरत् ।
___ अर्थ-मांस वुद, मांसपाक, विद्रधि और होता है।
तिलकालक ये चार रोग असाध्य होते हैं । मांसपाक रोग । मांस्पाकः सर्वजः सर्ववेदनो मांसशातनः ।
इनसे अतिरिक्त अन्यरोग साध्य होते हैं, अर्थ-त्रिदोष के प्रकोप से मांस पाक
ये सब चिकित्सा के योग्य हैं। नामक रोग उत्पन्न होता है, इस में तीनों
योनिके बीसभेद ।। दोषों के लक्षणवाली वेदना होती है, और
विंशतिळपदो योनेयिंते दुष्टभोजनात् । मांस सड़ २ कर गिर पड़ता है।
अर्थ-दूषित आहार के करनेसे योनि- रक्तार्बुद ।
संबंधी बीस प्रकारके रोग होते हैं । सरागैरसितैःस्फोटेपिटिकाभिश्चपीडितम योनिसंबंधी वात की व्यापत । मेहनं वेदनाश्चोग्रास्तं विद्यादसुगर्बुदम् ।
विषमस्थांगशयनभृशमैथुमसेवनैः । अर्थ--कुछ ललाई लिये हुए काले रंग
| दुष्टार्तवादपद्रव्यैर्बीजदोषेण देवतः ॥२८॥ के फोड़े और बहुतसी फुसियां लिंगपर पैदा
योनौद्धोऽनिल कुर्याद्रुक्तोदायामसुप्तता होकर कष्ट देने लगती है, इससे गुह्ये
पिपीलिकासप्तिमिव स्तंभं कर्कशतां स्वनम्
फेनिलारुणकृष्णाल्पतनुरुक्षार्तवस्त्रातम् । न्द्रिय में बड़ी प्रखर बेदना होने लगती है,
हान लगता है, | संसं वंक्षणपाश्चांदी व्यथां गुल्म क्रमेण च इसे रक्तार्बुद कहते हैं ।
तांस्तांश्च स्वान्गदान्ब्यापद्वातिकी नाम मांसावुद के लक्षण ।
___सा स्मृता। मांसार्बुद प्रागुदितं विद्रधिश्च त्रिदोषजः । अर्थ-विषमस्थानमें अंग रखने से,ऊंची . अर्थ-ग्रंथ्यादिरोग विज्ञानीयाध्याय में | नीची जगह में सोनेसे , अत्यन्त मैथुनसे,दुष्ट मांसावुद का वर्णन करदिया गया है, यह | मासिक रज के प्रवृत्त होनेसे, अहित पदार्थों सान्निपातिक होते हैं। विद्रधि भी त्रिदोषज के खानेसे,दैवी बीजदोषसे,बायुकुपित होकर है, इसका वर्णन भी विद्रधि विज्ञानीयाध्याय योनिमें वेदना, तोद, आयाम और छूने का में करदिया गया है।
ज्ञान न होना, चींटीसी चलना, स्तब्धता, " तिलकालक के लक्षण ।
कर्कशता, शब्द, झागदार लाल वा काला कृष्णानिभूत्वा मांसानि विशीर्यते समंततः | थोडा थोडा पतला वा रूक्ष आर्तव निकपक्कानिसन्निपातेनता विद्यात्तिलकालकान् । लना, ये सब उपद्रव उपस्थित होते हैं ।
अर्थ-त्रिदोषके प्रकोप से लिंगके चारों तत्पश्चात् वंक्षण और पाश्र्वादिस्थान में और का मांस काला पडकर गल जाता है । शिथिलता और व्यथा तथा क्रमसे गुल्म इस व्याधिको तिल काउक कहते हैं। और अनेक प्रकार की वातज पीडा पैदा
For Private And Personal Use Only