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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरस्थान भाषाटीकासमेत । (९११) होजाती हैं । ऐसी योनि व्यापत् को वातिकी | अंतर्मुखी योनि ॥ व्यापत् कहते है। अत्याशिताया विषम स्थितायाः सुरते मरुत् अतिचरणा योनि । अनेनोत्पीडितोयोनेस्थितःस्रोतसि वक्रयेत् सास्थिमांसं मुखं तीब्रजमंतर्मुखीति सा। सेवातिचरणा शोफसंयुक्तातिव्यवायतः । __ अर्थ-यदि स्त्री बहुत भोजन करके वि___ अर्थ-अत्यन्त मैथुन करने के कारण षमरीति से बैठकर पुरुषसंगम में प्रवृत हो जिस योनिमें सूजन होजाती है उसे अति तब वायु मुक्त अन्न से प्रीडित होकर योनि चरणा कहते हैं। के स्रोतमें अवस्थित होकर योनिके मुखको पाकरणा। मैथुनादतिवालायाः पृष्ठजंघोरुवंक्षणम् ।। टेढा करदे । ऐसा होने से योनि की हड्डी रुजन्संदूषयेद्योनि वायुः प्राचारणेति सा । और मांसमें घोर वेदना होने लगती है । इस अर्थ-अत्यन्त छोटी अवस्थावाली स्त्रीके रोग का नाग अंतर्मुखी योनिब्यापत् है । साथ अत्यन्त मैथुन करनेसे वायु उसकी सूचीमुखी योनि ॥ वातलाहारसेविन्यां ममन्यां कुपितोऽनिला पीठ,जांध, ऊरू और वंक्षण में वेदना करता | स्त्रियोयोनिमणुद्वारांकुर्यात्सूचीमुखीति सा हुआ योनिको दूषित करदेता है । इसरोग अर्थ-जो गर्भवती स्त्री वातवर्द्धक भोजन को प्राक्करणा कहते हैं। करती है, उसकी योनि के द्वार को वायु उदावृता ब्यापत् । कुपित होकर बहुत छोटा कर देती है : गोदावर्तनाद्योनि प्रपीडयति मारुतः । | ऐसी योनिव्यापत् को सूचीमुखी कहते हैं । सा फेनिलं रजः कृच्छादुदावृत्तं विमुंचति। इयं ब्यापदुदावृत्ता शुष्का व्यापत् । अर्थ-जब वायु कुपित होकर ऋतुसंबंधी | वेगरोधाटतो वायुर्दुष्टो विण्मूत्रसंग्रहम् । शोणित को बड़े बेगसे उलटा फिराकर ऊपर | करोतियोने शोषं च शुष्काख्यासातिबेदना को लेजाती है और ये निको प्रपीडित करती ___अर्थ-ऋतुकाल में मलमुत्रादि का वेग है । तब वात प्रपीडित योनि बेडे कष्टसे रोकने से वायु कुपित होकर मलमुत्रका रोध उदावृत्ता झागदार रक्तको बाहर निकालती और योनिका शोषण करती है, इसीको है । इस योनि व्यापत्को उदावृत कहते ह । शुष्का योनिब्यापत् कहते हैं । इसमें बडी जातघ्नी व्यापत् ॥ भयंकर बेदना होती है । जातमी तु यदानिलः। वामनी के लक्षण । जातं जातं सुतं हंति रौक्ष्यादुष्टार्तवोद्भवम् षडहात्सप्तरात्राद्वा शुक्र गर्भाशयान्मरुत् । . अर्थ-जब वायु रूक्षता के कारण दुष्ट | वमेत्सरुङ्नीरुजोवायस्याःसावामिनीमता आर्तव से उत्पन्न संतान को पैदा होते होते अर्थ-प्रकुपित वायु छः सात दिन पीछे मार डालती है उसे जातघ्नी व्यापत कहते हैं गर्भाशय से वीर्यको निकाल देती है । ऐसी For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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