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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म० ३२ उत्तरस्थान भाषाटीकासमेत। (९०५) ___ अर्थ-रक्तचन्दन, मजीठ, कूठ, लोध, सवर्ण कारक लेप । प्रियंगु, बटके अंकुर और मसूर इनका लेप जब्वाम्रपल्लया मस्तुहरिदे द्वे नवो गुडः। व्यंग रोग को दूर करता है, और मुख को | लेपासवर्णकृत् पिष्टं स्वरसेन च तिदुकम् ॥ ___ अर्थ-जामन के पत्ते, आम के पत्ते, कांति देनेवाला है। दही का तोड़, दोनों हलदी और नया गुड़ अन्य लेप । द्वे जीरके कृष्णतिलाः सर्षपाः पयसा सह। इनको पीसकर लेप करने से व्यंगादि रोग पिष्टाः कुर्वति वक्त्रेदुमपास्तव्यंगलांछनम् शांत होजाते हैं, अथबा तेंदू को उसी के __अर्थ-काला जीरा, सफेद जीरा, काले रस में पीसकर लेप करने से सवर्णता हो। तिल, सरसों इनको दूध के साथ पीसकर | जाती है । लेप करने से व्यंग और लांछन रोग दूर उबटना । होजाते हैं, तथा मुख चन्द्रमा के समान | उत्पलपत्रंतगरं प्रियंगुकालीयकं बदरमजा कांतिमान होजाता है। इदमुद्वर्तनमास्यं करोति शतपत्रसकाशम् ॥ अर्थ-कमलपत्र, तगर, चिरोंजी, दारुअन्य लेप । क्षीरपिष्टा घृतक्षौद्रयुक्ता वा भृष्टनिस्तुषाः।। | हलदी, कदंब, बेरका गूदा इनका उबटना मसूराःक्षीरपिष्टा वा तीक्ष्णाःशालमलिकंटकाः सगुडा कोलमजा वाशशासपक्षीद्रकल्कितः अभ्यंग । सप्ताहं मातुलुंगस्थं कुष्टं वा मधुनान्धितम्। एभिरेवोषधैः पिष्टैर्मुखाभ्यगाय साधयेत् । पिष्टा वा छागपयसा सक्षौद्रा मौशली जटा यथादोषर्त्तकान् स्नेहान मधुकक्काथसंयुतैः ॥ गोरस्थिमुशलीमूल युक्तं वा साज्यमाक्षिकम् अर्थ-ऊपर कही हुई औषधों का कल्क अर्थ-भुनीहुई और छिलके दूर की हुई | डालकरं मुलहटी का काथ मिलाकर दोष मसर को दूध के साथ पीसकर वा घी और | और ऋतुके अनुसार सिद्ध किये हुए घी की शहत में मिलाकर लेप करना चाहिये । | मालिश करना अच्छा है । अथवा सेमर के पैने कांटों को दध में पीस अन्य अभ्यंग ।। कर लेप करे, अथवा बेर का गूदा और यवान् सर्जरसं रोधमुशीरं चंदनं मधु । । खर्गोश का रुधिर इन को पीसकर गुड़ और घूतं गुडं च गोमूत्रे पचेदादालेपनात् ॥ शहत मिलाकर लेपकरे, अथवा कुठ को तदभ्यंगानिहत्याशु नीलिकाव्यंगशिकान् । सात दिन तक बिजौरे में रखकर शहत में मुख करोति पद्माभ पादौ पद्मदलोपमौ ॥ मिलाकर लेप करे, अथवा मूसली की जटा अर्थ-जौ, राल, लोध, खस, रक्तचंदन, को वकरी के दूध के साथ पीसकर शहत | शहत, घी, गुड इनको गोमूत्र में पकावै जब में मिलाकर लेपकरे, अथवा गौ की अस्थि । कलछी से लगने लगे तब उतार ले । इसका और मूसली की जड़ को पीसकर ही और मर्दन करने से नीलिका, व्यंग और मुखशस्त मिलाकर लेप करें। | दूषिकादि रोग दूर होकर मुख कमल के For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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