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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । ( ९३३) वक्ष्यमाण औषधोंके चूर्ण में युक्तकरै ||३७|| बालछड नेत्रवाला मजीठ मुलहटी नखी शोफ क्षुद्र मोथा कूट खरेहटी बडी खरैहटी गंगेरण अगर चंदन केसर सारिवा सरलवृक्ष राल देवदार ||३८||पद्मकादिगणके औषध इन्होंसे संयुक्त किये तिलोंके चूर्णका सब गंधवाले औषधों में सिद्ध किये दूधके संग पीडितकरै॥३९॥ पीछे शिलारस रायशण शालपर्णी कसेरू शीसमवृक्ष तगर तेजपात लोध इन्होंको और दूध पूर्वोक्त वालछड आदि औषधोंके दूधमें किये कल्कोंकरके तेलको पकावै ॥ ४० ॥ यह गंध तेल उत्तम है, और हड्डियोंको स्थिर करता है, और पित्तसे उपजे हुये और अत्यंत वीर्यवाले और पान नस्य आदि अनेक प्रकार के उपयोगोंकर केभी व्याप्तहुये विकारों को तत्काल जीतता है ॥ ४१ ॥ इति बेरीनिवासिवैद्य पंडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदय संहिताभाषाटीकायामुत्तरस्थाने सप्तत्रिंशोऽध्यायः ॥ २७ ॥ अष्टाविंशोऽध्यायः । अथातो भगन्दरप्रतिषेधमध्यायं व्याख्यास्यामः । इसके अनंतर भगंदरप्रतिषेधनामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे । हस्त्यश्वपृष्ठगमनकठिनोत्कटकासनैः॥ अशनिदानाभिहितैरपरैश्च निषेवितैः ॥ १॥ अनिष्टादृष्टपाकेन सद्यो वा साधुगर्हणैः ॥ प्रायेण पिटिकापूर्वी योङ्गले यङ्गलेऽपि वा ॥ २ ॥ पायोर्व्रणोऽन्तर्बाह्य वा दुष्टासृङ्मासगो भवेत् ॥ वस्ति मूत्राशयाभ्यासग तत्वात्स्यन्दनात्मकः ॥ ३ ॥ भगन्दरः सः हाथी और घोडोंकी बहुत सवारीसे कररे और खुरदरे आसनोंसे और बवासीरके निदानमें कहुये कारणसे और चीजों के सेवनसे ॥ १ ॥ और अनिष्टभाग्य के फलसे और साधुओंकी निंदासे जल्दी बहुत करके पहले फोडा होता है पीछे दो अंगुल में अथवा एक अंगुलमें ॥ २ ॥ गुदा के बाहर और भीतर व्रण होके बिगडके रुधिर मांसको प्राप्त होजाता है और सूत्रबस्ति के समीप होने से झिरने लगजाता है || ३ || सो संपूर्ण व्रण भगंदर कहा है ॥ सर्वश्च दारयत्यक्रियावतः ॥ भगवस्तिगुदास्तेषु दीर्य्यमाणेषु भूरिभिः ॥ ४ ॥ वातमूत्रशकृच्छुकं खैः सूक्ष्मैर्वमति क्रमात् ॥ सो नहीं इलाज करनेवालेको नष्ट करदेता है और भग बस्ति गुदा इन्होंको विदीर्ण करता है इसवास्ते भगंदर कहा है और बहुत || ४ || सूक्ष्म छिद्रोंसे वात मूत्र विष्टा वीर्य ये सब क्रमसे झिरने लगते हैं । दोषः पृथग्युतैः सर्वेरागन्तुः सोऽष्टमः स्मृतः ॥ ५ ॥ तीन न्यारे दोषोंसे और तीन मिले दोषोंसे एक संनिपातसे पैदा होता है और भागंतुक आठवाँ कहा है ॥ ५ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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