________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(३४) . अष्टाङ्गहृदये--
और प्रकटहै खट्टानमक-स्नेह-ये जिसमें ऐसा और विशेषता करके सूखे शहदसे संयुक्त और हलके भोजनको सेवे और इस वर्षाकालमें सवारीपे बैठकर विचरै, और सुगंधित द्रव्यके संयोगसे स्नानकरै, और निरंतर धूपित स्वच्छरूप धोती और पगडीको धारण करै ।। ४७ ॥
हर्म्यपृष्ठे वसेद्वाष्पशीतशीकरवर्जिते॥
नदीजलोदमन्थाहःस्वप्नायासातपांस्त्यजेत् ॥४८॥ भाँफ-शीत-कणसे वर्जित और सफेद कलीआदिसे स्वच्छ महल आदि स्थानमें बसै और नदीका पानी-आलोडित किये सत्तू-दिनका शयन-परिश्रम-घाम-इन्होंको त्यागे ॥ ४८ ॥
वर्षाशीतोचिताङ्गानां सहसैवार्करश्मिभिः ॥
तप्तानां सञ्चितं वृष्टौ पित्तं शरदि कुप्यति ॥ ४९ ॥ वर्षाऋतुमें जो शीत है तिसके अनुसार प्रकृति अंगवाले और सूर्यके किरणोंकरके तप्त मनुष्यों के जो वर्षाकालमें संचित हुआ पित्त है, वह शरद् ऋतुमें कुपित होताहै ॥ ४९ ॥
तज्जयाय घृतं तिक्तं विरेको रक्तमोक्षणम् ॥
तिक्तं स्वादु कषायं च क्षुधितोऽन्नं भजेल्लघु ॥ ५० ॥ तिसको जीतनेके अर्थ तिक्तद्रव्योंकरके सिद्ध किया घृत-जुलाब-फस्तका खुलावना इन्होंको और क्षुधित होवे तब तिक्त-स्वादु -कसैला-रस और हलका अन्न सेवता रहै ॥ ५० ॥
शालिमुद्गसिताधात्रीपटोलमधुजाङ्गलम् ॥
तप्तं तप्तांशुकिरणैः शीतं शीतांशुरश्मिभिः ॥५१॥ और शालीचावल-मूंग-मिसरी-आंमला-परवल-शहद-जांगलदेशका मांस इन्होंको सेवे और सूर्यके किरणोंकरके तप्त और चंद्रमाके किरणोंकरके शीतल ॥ ५१ ॥
समन्तादप्यहोरात्रमगस्त्योदयनिर्विषम् ॥ .
शुचि हंसोदकं नाम निर्मलं मलजिजलम् ॥ ५२॥ - और अगस्त्यमुनिके उदयकरके अमृतरूप और पवित्र और स्वच्छ हंसोदक पानी पित्त और कफको जीतताहै, जो दिनमें सूर्यको किरणसे तप्त रात्रिमें चंद्रकिरणसे शीतल अगस्त्यके उदयसे विषरहितहै वह हंसकी समान उज्ज्वल होनेसे हंसोदक नामहै ॥५२॥
नाभिष्यन्दि न वा रूक्षं पानादिष्वमृतोपमम् ॥ चन्दनोशीरकर्पूरमुक्तास्त्रग्वसनोज्ज्वलः। ५३ ॥
For Private and Personal Use Only