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(८९४)
अष्टाङ्गहृदयेनवेऽर्बुदे त्वसंवृद्ध छेदिते प्रतिसारणम् ॥७७॥ स्वर्जिकानागरक्षौद्रैः क्वाथो गण्डूष इष्यते ॥ गुडूचीनिम्बकल्कोत्थो मधुतैलसमन्वितः॥७॥
यवान्नमुक्तीक्ष्णतैलनस्याभ्यङ्गांस्तथाचरेत् ॥ और नवीन तथा नहीं बढेहुए और छेदितकिये अर्बुदमें प्रतिसारण हितहै, ॥७७॥ शाजी संठ शहदके क्वाथका कुला वांछितहै, और गिलोय और नींबके कल्कमें शहद और तेल मिला ॥७टा और यवोंके अन्नका भोजन करनेवाला तीक्ष्णतेलके नस्य तथा मालिसको आचरितकरै ॥
वमिते पूतिवदने धूमस्तीक्ष्णः सनावनः॥ ७९ ॥ समाधातकीरोधफलिनीपद्मकैर्जलम् ॥
धावनं वदनस्यान्तश्चूर्णितैरवचूर्णनम् ॥ ८॥ और दुर्गधि मुखमें प्रथम वमन कराके पीछे तीक्ष्ण नस्य और तीक्ष्ण धूमको प्रयुक्तकरै ।।७९।। मजीठ धायके फूल लोध प्रियंगु कमल इन्होंके पानीकरके मुखको भीतरसे धोवै, और इन्हीं औषधोंके चूर्णकरके अवचूर्णित करे ।। ८० ॥
शीतादोपकुशोक्तं च नावनादि च शीलयेत् ॥ ८१ ॥ और शीताद तथा उपकुशरोगमें कहेहुये नस्य आदिका अभ्यासकरै ।। ८१ । फलत्रयद्वीपिकिराततिक्तयष्ट्याह्वसिद्धार्थकटुत्रिकाणि ॥मुस्ता हरिद्राद्वययावशूकवृक्षाम्लकाम्लानिमवेतसाश्च ॥८२॥ अश्वत्थजम्ब्वाम्रधनञ्जयत्वक्त्वक्चाहिमारात्खदिरस्य सारः ॥ क्वाथेन तेषां घनतां गतेन तवर्णयुक्ता गुटिका विधेयाः॥८॥ ता धारिता नन्ति मुखेन नित्यं कण्ठोष्ठताल्वादिगदान्सुकृच्छ्रान् ॥ विशेषतो रोहिणिकास्यशोषगन्धान्विदेहाधिपति प्रणीताः ॥४॥ त्रिफला चीता चिरायता मुलहटी सरसों झूठ मिरच पीपल नागरमोथा हलदी दारुहलदी जत्राखार आमशोल बिजोरा अमलवेतस ॥८२॥ पीपलवृक्ष जांमन आंम कोहवृक्ष इन्होंकी छाल हिवरवृक्षकी छाल खैरसार इन्होंके करडेरूपकाथमें इन्हीका चूर्ण मिला गोलियां बनानी योग्यहैं ॥ ८३ ।। मुखकरके धारितकरी नित्यप्रति ये गोली कंठ ओष्ठ तालु आदिके कष्टसाध्यरोगोंको और विशेष- .. करके रोहिणीक मुखशोष मुखगंध इन आदिरोगोंको नाशतीहैं, ये जनकराजाने गोलियांकहीहैं ८४
खदिरतुलामम्बुघटे पक्त्वा तोयेन तेन पिष्टैश्च॥चन्दनजोऽङ्गककुंकुमपरिपेलववालकोशीरैः ॥ ८५ ॥ सुरतरुरोध्रद्राक्षाम
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