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(३२)
अष्टाङ्गहृदयेकायमाने चिते चूतप्रवालफललुम्बिभिः ॥
कदलीदलकहारमृणालकमलोत्पलैः॥ ३५ ॥ और बांस आदिकरके निष्पादित आमोंके अंकुर और फलोंकरके व्याप्त ऐसे स्थानमें केलाके पत्ते कलार-कमलकी दंडी-कमल कुमोदनी ॥ ३५ ॥
कल्पिते कोमलैस्तल्पे हसत्कुसुमपल्लवे ॥
मध्यंदिनेऽर्कतापातः स्वप्याद्धारागृहेऽथ वा ॥ ३६ ॥ इन्होंकरके कल्पित और हसित अर्थात् खिलेहुये पुष्प और पत्तोंकरके संयुक्त ऐसी शय्यापै दुपहरके समय सूयँके तापकरके आर्त हुआ मनुष्य शयन करै, अथवा खिले हुये पुष्प और पत्तोंसे संयुक्त रूप धारागृह अर्थात् फुहारावाले स्थानमें शयन करै ॥ ३६॥
पुस्तस्त्रीस्तनहस्तास्यप्रवृत्तीशीरवारिणि ॥
निशाकरकराकीर्णे सोधपृष्ठे निशासु च ॥ ३७॥ काष्ठआदिकी पुतलीके स्तन-हाथ-मुखकरके प्रवृत्त पानीमें और चंद्रमाकी किरणों करके आकीर्ण और रात्रीमें स्थानके तलभागमें ॥ ३७॥
आसना स्वस्थचित्तस्य चन्दनार्द्रस्य मालिनः॥ निवृत्तकामतन्त्रस्य सुसूक्ष्मतनुवाससः॥३८॥ स्थिति करनी और स्वस्थचित्तवाला और चंदनकरके अनुलिप्त हुआ और पुष्योंकी मालाको पहने हुये और कामतंत्र करके निवृत्त ऐसे मनुष्य के वास्ते सूक्ष्म और स्वच्छ ऐसे वस्त्रोंको ॥३८॥
जलास्तालवृन्तानि विस्तृताः पद्मिनीपुटाः ॥
उत्क्षेपाश्च मृदूत्क्षेपा जलवर्षिहिमानिलाः ॥ ३९॥ पानीसे गीले करे, और ताडवृक्षके बीजने और विस्तृत नलिनीके पत्र और मोरके पंखों करके किये और कोमलहवाको देनेवाले बीजने,और जलको वर्षानेवाले शीतलवायुसे संयुक्त बीजने ॥३९॥
कर्पूरमल्लिकामालाहाराः सहरिचन्दनाः॥
मनोहरकलालापाः शिशवः सारिकाः शुकाः॥४०॥ कपूर और चमेलीके पुष्पोंकी माला और हारचन्दनकरके संयुक्त मोतियोंके हार. और मनोहर तथा मधुर आलापवाले बालक व मैंना व तोते ॥ ४० ॥
मृणालवलयाः कान्ताःप्रोत्फुल्लकमलोज्ज्वलाः॥ जंगमा इव पद्मिन्यो हरन्ति दयिताः क्लमम् ॥४१॥
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