________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् ।
(८५७) कडुवे तेलके समान झिराताहै पीछे कष्टसे अंकुरित होताहै ऐसे अंकुरित हुआ यह विदारिका रोग निश्चय कर्णशष्कुलिको संकुचित करता है ॥ १८ ॥
शिरास्थः कुरुते वायुः पालीशोषं तदाह्वयम् ॥ शिरामें स्थितहुआ वायु पालिके शोषको करताहै, तब पालिशोष उपजताहै, यह पालिशोष रोग कहाताहै ॥
.. कृशा दृढा च तन्त्रीवत्पाली वातेन तन्त्रिका ॥ १९ ॥
और वायुकरके कृशरूप और दृढरूप और वीणाकी समान पाली होजातीहै, यह तंत्रिका रोग कहाताहै ॥ १९॥
सुकुमारे चिरोत्सर्गात्सहसैव प्रवद्धिते ॥
कर्णे शोफः सरुक्पाल्यामरुणः परिपोटवान् ॥ २०॥ सुकुमाररूप और चिरोत्सर्गसे वेगसे बढे हुए कानमें शूलसे संयुक्त और फुरनेसे संयुक्त शोजापालीमें उपजताहै ॥ २० ॥
परीपोटः स पवनादुत्पातः पित्तशोणितात् ॥ गुर्वाभरणभारायैः श्यावोरुग्दाहपाकवान् ॥२१॥
श्वयथुः स्फोटपिटकारागोषाक्लेदसंयुतः॥ यह परिपोट रोग वायुसे होताहै, पित्तसे और रक्तसे उत्पातरोग होताहै भारी गहने और भार आदिकरके कुपितहुए पित्त और रक्तसे धूम्रवर्णवाला और शूल दाह पाकवाला ॥ २१ ॥ फोडा फुनसी राग संताप क्लेदसे संयुक्त शोजा उपजताहै ॥
पाल्या शोफोऽनिलकफात्सर्वतो निय॑थः स्थिरः॥२२॥
स्तब्धः सवर्णः कण्डूमानुन्मन्थो गल्लिरश्च सः॥ ___ वातसे कफसे पालीमें सब तर्फसे पीडाकरके वर्जित और स्थिर ॥ २२ ॥ और स्तब्ध और वर्णके समान और खाजसे संयुक्त शोजा उपजताहै यह उन्मंथरोग तथा गल्लिर रोग कहाताहै ॥
दुर्विद्धे वर्द्धिते कर्णे सकण्डूदाहपाकरुक् ॥ २३ ॥
श्वयथुः सन्निपातोत्थः स नाम्ना दुःखवर्द्धनः॥ और बुरी तरह विद्धहुआ तथा वार्द्धतरूप कानमें खाज दाह पाक शूल संयुक्त ॥ २३ ॥ शोना सन्निपातसे उपजताहै यह दुःखवर्धन रोग कहाताहै ॥
कफासृकृमिजाः सूक्ष्माः सकण्डूक्लेदवेदनाः॥२४॥
लेह्याख्याः पिटिकास्ता हि लियुः पालीमुपेक्षिताः॥ __ और कफ रक्त कृमिसे उपजीहुई सूक्ष्म खाज क्लेद पीडासे संयुक्त ॥ २४ ॥ और लेह्यनामवाली फुनसियां उपजतीहैं पीछे नहीं चिकित्सित करी ये फुनसियां कानको चाटजातीहैं ।।
For Private and Personal Use Only