________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् ।
(८०७) और दोनों हलदी लोध मुलहटी हरडै नींबके पत्ते तांबाकी रज इन्होंको जलमें पीस बत्ती बना कुकूणरोगमें युक्त करनी हितहै ॥ ३२ ॥ और दूध शहद घृत इन्होंसे युक्त और दग्धकिया लोहाका चूर्ण अथवा किसीके मतमें दग्धकिया समुद्रझागके चूर्णसे युक्त हितहै ।। ... एलारसोनकतकशंखोषणफणिज्जकैः॥३३॥
वर्तिः कुकूणपोथक्योः सुरापिष्टैः सकट्फलैः ॥ और इलायची लहसन निर्मलीफल शंख सूंठ मिरच पीपल मरुवा ॥ ३३ ॥ कायफल इन्होंको मदिरामें पीस बत्ती बना कुकूणक और पोथकी रोगमें युक्त करनी हित कहीहै ।।
पक्ष्मरोधे प्रवृद्धेषु शुद्धदेहस्य रोमसु ॥३४॥उत्सृज्य द्वौ भ्रुवो धस्ताद्भागौ भागं च पक्ष्मतः॥ यवमात्रं यवाकारं तिर्यकछि त्त्वाऽऽद्भवाससा ॥३५॥ अपनेयमसृक्तस्मिन्नल्पीभवति शोणितम्॥सीव्येत्कुटिलया सूच्या मुद्गमात्रान्तरैः पदैः॥३६॥ बद्धा ललाटे पढेच तन्त्र सीवनसूत्रकम्॥नातिगाढश्लथं सूच्या निक्षिपेदथयोजयेत्॥३७॥ मधुसर्पिःकवलिकांन चास्मिन्बन्धमाचरेत्॥न्यग्रोधादिकषायैश्च सक्षीरैः सेचयेद्बुजि ॥ ३८॥ पंचमे दिवसे सूत्रमपनीयावचूर्णयेत् ॥गैरिकेण वणं युज्यात्तीक्ष्णं नस्याञ्जनादि च ॥ ३९ ॥
और पक्ष्मरोध रोगमें रोम बढजावै तब शुद्ध शरिकरके ॥ ३४ ॥ भकुटीके नीचेके दो भागों को त्यागके और पलकके भागको त्यागके जवके समान परिमित और जयके आकार स्थानको छेदन करके गीले वस्त्रसे ॥ ३५ ॥ रुधिरको बन्धकरे और तिस विषे जब अल्प रुधिर होजावे तब टेढी सूईसे मूंगके प्रमाण अन्तर्पदोंकरके सीदेवै ॥ ३६॥ और मस्तकमें पट्टी बांधके तहां सीनेके सूत्रको टांग देवै और अतिकरडा न हो और ढीला न हो ऐसे सूत्रको तहां सूईकरके टांगदेव ॥ ३७॥ और शहद घृत इन्होंका ग्रास धारण करवावै और इसमें बंधन करना नहीं चाहिये और जो पीडा होवे तो वट आदि वृक्षोंके दूध युक्त क्वाथकरके सेचनकरै ॥ ३८ ॥ फिर पांचवें दिन सूत्रको दूरकर तहां गेरूका चूर्ण बुरकादेवै और तीक्ष्ण नस्य तथा अञ्जनादिकोंको प्रयुक्तकरै॥३९॥
दहेदशान्तौ निर्भुज्य वर्त्मदोषाश्रयां वलीम् ॥ सन्दशेनाधिकं पक्ष्म हृत्वा तस्याश्रयं दहेत् ॥४०॥ सूच्यग्रेणाग्निवर्णेन दाहो बाह्यालजेः पुनः ॥ भिन्नस्य क्षारवह्निभ्यां सुच्छिन्नस्यार्बुदस्य च ॥४१॥
For Private and Personal Use Only