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(८०६)
अष्टाङ्गहृदयेऔर कुकणरोगमें खैर त्रिफला नीबके पत्ते इन्होंकरके सिद्धकिये वृतको॥२४॥बालकको चूचीदेनेवाली धाय पीके वमन करदेवे, अथवा इस धायको पीपल मुलहटी सिरसम सेंधानमकसे वमन दिवावै।।
__ अभयापिप्पलीद्राक्षाकाथेनैनां विरेचयेत् ॥२५॥ और हर. पीपल दाखके क्वाथसे इसको जुलाब दिवावै ॥ २५ ॥
मुस्ताद्विरजनीकृष्णाकल्केनालेपयेत्स्तनौ॥ धूपयेत्सर्षपैः साज्यैः शुद्धां क्वाथं च पाययेत् ॥ २६ ॥
पटोलमुस्तमृद्वीकागुडूचीत्रिफलोद्भवम् ॥ और नागरमोथा दोनों हलदी पीपल इन्होंके कल्कसे स्तनोंपर लेप करलेवै और बृतसहित सिरसमकरके धूपलेवै और वमन विरेचन आदिकरके शुद्धकीहुई तिसको काथ पिलावे ॥ २६ ॥ परवल नागरमोथा मुनका दाख त्रिफलाके काथको पीवै ।।
शिशोस्तु लिखितं वर्त्म सुतासृग्वाम्बुजन्माभिः ॥ २७ ॥
धाव्यश्मन्तकजम्बूथपत्रक्वाथेन सेचयेत् ॥ और बालकका वम लिखाहुआ अथवा जोकोंकरके रुधिर निकसायेहुएको जलसे ॥ २७ ॥ आंवला आपटा जामनके पत्तोंके काथसे सेचनकरै ॥
प्रायःक्षीरघृताशित्वाद्दालानां श्लेष्मजा गदाः ॥ २८ ॥
तस्माद्वमनमेवाग्रे सर्वव्याधिषु पूजितम् ॥ और विशेषकरके दूध घृतके खानेवाला होनेसे बालकको कफके रोग होतेहैं ॥ २८ ॥ इसवास्ते सब व्याधियोंमें बमनही करवाना पूजितहै ॥ सिंधूत्थकृष्णापामार्गबीजाज्यस्तन्यमाक्षिकम्॥२९॥चूर्णो वचा याः सक्षौद्रो मदनं मधुकान्वितम्॥क्षीरंक्षीरान्नमन्नं च भजतः क्रमशः शिशोः॥३०॥ वमनं सर्वरोगेषु विशेषेण कुकूणके॥ सप्तलारससिद्धाज्यं याज्यं चोभयशोधनम् ॥३१॥
और सैंधानमक पीपल ऊगाके बजि घृत दूध शहद इन्होंकरके वमन दिवावे ॥ २९ ॥ और वचका चूर्ण मैनफल मुलहटी इन्होंको शहदके संग देकै वमन युक्त करवावे और दूध अन्न इन्होंको खातेहुये बालकोंको यथाक्रमसे ये तीनों वमन युक्त करवाने चाहिये ॥ ३० ॥ और सब रोगोंमें बालकको वमन दिवावे विशेषकरकै कुकूणकरोगमें करवावे और सातलाके रसमें सिद्धकिया वृत वमनमें और जुलाबमें दवै ॥ ३१ ॥
द्विनिशारोध्रयष्टयाबरोहिणीनिम्बपल्लवैः॥ कुकुणके हिता वतिः पिष्टैस्ताम्ररजोन्वितैः॥ ३२॥ क्षीरक्षौद्रघृतोपेतं दग्धं वा लोहितं रजः॥
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