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(७९०)
अष्टाङ्गहृदयेउन्मादकुष्ठापस्मारहरं वन्ध्यासुतप्रदम् ॥२५॥ वाक्स्वरस्मृ
तिमेधाकृद्धन्यं ब्राह्मीघृतं स्मृतम् ॥ __ और ब्राह्मीका स्वरस १२८ तोलेमें ६४ तोले घृतको सिद्धकरै ॥ २३ ॥ फिर झूट मिरच पीपल कालानिशोत जमालगोटाकी जड शंखपुष्पी अमलतास सातला वायविडंग इनको तोला प्रमाण भरले कल्क बना तिसमें मिला तिस घृतको सिद्ध करलेवै ॥ २४ ॥ फिर इसकी खुराक ४ तोलोंसे लेके चार दिनतक सोलह तोले प्रमाणतक खावै अर्थात् हमेशैं चार तोले बढके खावे यह घृत उन्माद कुष्ठ अपस्मार इन्होंको नाशताहै और वंध्या स्त्रियोंको पुत्र देनेवालाहै ॥ २५ ॥ और वाणी स्वर स्मृति मेधा इन्होंको करैहै और यह घृत ब्राह्मीघृत नामसे कहाहै ।।
वराविशालाभद्रैलादेवदावेलवालुकैः॥२६॥ द्विसारिवाद्विरज नीद्विस्थिराफलिनीनतैः॥बृहतीकुष्ठमञ्जिष्ठानागकेशरदाडिमैः ॥२७॥वेल्लतालीसपत्रैलामालतीमुकुलोत्पलैः॥ सदन्तीपद्मक हिमैः कर्षांशैः सर्पिषः पचेत् ॥२८॥प्रस्थं भूतग्रहोन्मादकासा पस्मारपाप्मसु ॥ पाण्डुकण्डूविषे शोफे मोहे मेहे गरे ज्वरे ॥ २९॥ अरेतस्यप्रजसि वा दैवोपहतचेतसि॥ अमेधसि स्खलद्वाचि स्मृतिकामेऽल्पपावके ॥३० ॥ बल्यं माङ्गल्यमायुष्यं कान्तिसौभाग्यपुष्टिदम् ॥ कल्याणकमिदं सर्पि श्रेष्ठं पुंसवनेषुच ॥३१॥
और त्रिफला गंडुभा बडी इलायची देवदार एलवा ॥ २६ ॥ दोनों अनंतमूल दोनों हलदी सालपर्णी पृस्निपर्णी मालकांगनी तगर कटेहली कूठ मंजीठ नागकेशर अनारदाना ॥ २७ ॥ बेल गिरी तालीशपत्र चमेलीके पुष्प कमल जमालगोटाकी जड चंदन इन्होंको तोला प्रमाण लेवे फिर इसमें ६४ तोले घृतको पकावे ॥ २८ ॥ यह घृत भूतग्रह उन्माद खांसी अपस्मार दुःख पांडुरोग खाज विष शोजा मोह प्रमेह विषरोग ज्वर इन्होंमें देनाचाहिये ॥ २९ ॥ और वीर्यसे रहित पुरुष संतान चाहे देवतासे उपहतचित्त हुआ पुरुष और जो मेधासे रहित होवे जिसकी वाणी स्खलितहोवे और जो स्मृतिकी कामना रखताहो और मंदाग्निवाला इन्होंको यह घृत देनाचाहिये ॥३०॥ और यह घृत बलदायकहै मंगलदायकहै आयुमें हितहै और कांति सौभाग्य पुष्टि इन्होंको देताहै और यह कल्याणक नामवाला घृत पुरुषपनेमें श्रेष्टहै ॥ ३१ ॥
एभ्यो द्विसारिवादीनि जले पक्त्वैकविंशतिः॥रसेतस्मिन्पचे त्सपिष्टिक्षीरचतुर्गणम् ॥३२॥ वीराद्विमेदाकाकोलीकपिक च्छूविषाणिभिः॥ शूर्पपीयुतैरेतन्महाकल्याणकं परम्॥३३॥ बृंहणं सन्निपातघ्नं पूर्वस्मादधिकं गुणैः॥
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