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उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (७७३) रायशण शालपर्णी बडापंचमूल वच नागरमोथा इन्होंके क्वाथमें और अनंतमूल सूंठ मिरच पीपल चीता ॥ ५२ ॥ पाठा बायविडंग मुलहटी दूधी हींग देवदार पीपलामूल इंद्रयव इन्होंके कल्कोंमें घृतको पकावै यह वृत बालकको निरंतर हितहै ॥५३॥ और सब रोगोंको तथा सब ग्रहोंको नाशताहंदीपनहै बल और वर्णको देताहै ॥
सारिवासुरभीब्राह्मीशंखिनीकृष्णसर्षपैः॥ ५४॥ वचाश्वगन्धासुरसायुक्तैः सर्पिर्विपाचयेत् ॥
तन्नाशयेद्ग्रहान्सर्वान्पानेनाभ्यञ्जनेन च ॥ ५५॥ और अनंतमूल रायशण ब्राह्मी शंखिनी कालीसरसों ॥ ५४ ॥ वच असगंध तुलसी इन्होंमें घृतको पकावै यह घृत पान और मालिश करके सब ग्रहोंको नाशताहै ॥ ५५ ॥
गोशृंगलोमवालाहिनिर्मोकवृषदंशविटानिम्बापत्राज्यकटुका मदनं बृहतीद्रवम् ॥ ५६ ॥कार्यासास्थियवच्छागरोमदेवाह्वसर्षपम्॥ मयूरपत्र श्रीवासतुषकेशं सरामठम् ॥ ५७॥ मृद्भाण्डे वस्तमूत्रेण भावितं श्लक्ष्णचूर्णितम् ॥ धूपनार्थं हितं सर्वभूतेषु विषमे ज्वरे ॥ ५८॥ गायके सींग रोम बाल सांपकी कांचली बिलावका विष्टा नींबके पत्त घृत कुटकी मैनफल दोनों कटेहली ॥ ५६ ॥ कपासका विंदोली यव बकराके रोम देवदार सरसों श्वेत ऊंगाके पत्ते श्रीवेष्टधूप बहेडा वाल हींग ॥ ५७ ॥ इन्होंके मिहीनकिये चूर्णको माटीके पात्रमें बकराके मूत्रकरके भावित करै यह धूप सब भूतविकारों में और विषमज्वरमें हितहै ॥ ५ ॥
घृतानि भूतविद्यायां वक्ष्यन्ते यानि तानि च ॥ ___ युंज्यात्तथा बलिं होमं स्नपनं मन्त्रतन्त्रवित् ॥ ५९॥
जो धृत भूतविद्यामें कहेजावेंगे तथा तिन्होंको और बलि होम दान इन्होंको मंत्र तंत्रका जानने बाला वैद्य प्रयुक्त करै ॥ ५९॥
.पूतीकरञ्जत्वपत्रं क्षीरिभ्यो बर्बरादपि ॥ तुम्बीविशालारलुकाशमीबिल्वकपित्थकाः॥६॥
उत्काथ्य तोयं तद्रात्रौ बालानां स्नपनं शिवम् ॥ पूतिकरंजुआकी छाल और पत्ते और दूधवाले वृक्षोंके छाल और पत्ते और तिलवणके छाल और पत्ते और तूंबी इन्द्रायण सोनापाठा जांटी वेलागरी कैथ इन्होंके ।। ६० ॥ जलको उबालके रात्रिमें बालकोंका स्नान कराना हितहै ॥
अनुवन्धान्यथाकृच्छ्रे ग्रहापायेऽप्युपद्रवान् ॥ ६१॥ बालामयनिषेधोक्तभेषजैः समुपाचरेत् ॥१२॥
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