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श्रीः। अथ अष्टाङ्गहृदयसंहितायाम्
उत्तरस्थानम्।
प्रथमोऽध्यायः। अथातो बालोपचरणीयमध्यायं व्याख्यास्यामः । अब हम इसके अनंतर बालोपचरणीयनामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे ।
इति ह स्माहुरात्रेयादयो महर्षयः॥ ऐसे आत्रेयआदि महर्षि कहतेभयेहैं ॥ जातमात्रं विशोध्योल्बाहालं सैन्धवसर्पिषा ॥ प्रसूतिक्लेशितं चानुबलातैलेन सेचयेत्॥१॥अश्मनोदिनं चास्य कर्णमूले स माचरेत्॥अथास्य दक्षिणे कर्णे मन्त्रमुच्चारयेदिमम् ॥ २॥ अङ्गादङ्गात्सम्भवसि हृदयादाभजायसे॥आत्मा वै पुत्रनामा सि स जीव शरदा शतम् ॥ ३॥ शतायुः शतवर्षोऽसि दीर्घमायुरवाप्नुहि नक्षत्राणि दिशो रात्रिरहश्च त्वाभिरक्षतु ॥४॥ तत्काल उत्पन्नहुये बालकको सेंधानमक और घृतकरके जेरसे.शोधितकर पश्चात् प्रसूतिसे क्लेशि तहुये तिस बालकको बलातेलसे सेचितकरै ॥ १ ॥ पीछे इसबालकके कानोंकी जडमें दो पत्थरोंके शब्दको करे पीछे इसबालकके दाहिने कानमें इस वक्ष्यमाण मंत्रका उच्चार करे ॥ २॥ भंगसे अंगसेतूहै और हृदयसे तू उपजाहै निश्चै तू पुत्रनामवाला आत्माहै सौ १०० वर्षतक जीवता रह ॥ ३ ॥ सौवर्षकी आयुओंवाला और शतवर्षवाला तू है हेबालक तू दीर्घ आयुको प्राप्तहो और सब नक्षत्र सब दिशा रात्रि और दिन सब तेरी रक्षाकरें ॥ ४ ॥
वस्थीभूतस्य नाभिंच सूत्रेण चतुरंगुलाताबद्धोर्ध्व वर्द्धयित्वा च ग्रीवायामवसंजयेत् ॥५॥ नाभिंच कुष्ठतैलेन सेचयेस्नप वेदनु ॥क्षीरिवृक्षकषायेण सर्वगन्धोदकेन वा ॥६॥ कोष्णेन सप्तरजततपनीयनिमजनैः॥
वस्थहुये तिस वालकके चार अंगुलसे उपरांत सूत्रकरके नाभीको बांध और पीछे छेदितकर ग्रीवामें योजित करै ॥ ५ ॥ और नाभिको कूठके तेलकरके सेचितकरै पीछे क्षीरविक्ष अर्थात्
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