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कल्पस्थानं भाषार्टीकासमेतम् । (७३५) क्षिकम् ॥४५॥ तद्विदारीकणायष्टीशताबाफलकल्कवत् ॥ ब स्तिरीषत्पटुयुतः परमं बलशुक्रकृत् ॥ ४६॥ पंख पित्ता आंत पैर वीट तुंडसे वर्जितकिये मोरको ॥ ४४ ॥ चार चार तोलेभर लघुपंचमुलकरके समन्वितकर पीछे २५६ तोले दूध और २५६ तोले पानीमें पकावे, जब दूध मात्र शेषरहै तब घृत शहद ॥ ४५ ॥ विदारीकंद पीपल मुलहटी शौंफ मैंनफलके कल्कसे संयुक्त और कछुक नमकसे संयुक्त बस्ति अतिशयकरके बल और वीर्य्यको करती है ।। ४६ ॥
कल्पनेयं पृथक्का- तित्तिरिप्रभृतिष्वपिाविष्किरेषु समस्तेषु प्रतुदप्रसहेषु च॥४७॥जलचारिषु तद्वच्च मत्स्येषुक्षीरवर्जिता॥ तीतर आदि विष्किरसंज्ञक सब पक्षियोंमें तथा प्रतुद और प्रसहसंज्ञक पक्षियोंमें भी यह पृथक् कल्पना करनी योग्य है ॥ ४७ ॥ परंतु मछलियोंमें दूधसे वर्जित यह कल्पना करनी योग्य है ।
गोधानकुलमाारशल्यकोन्दुरजं पलम्॥४८॥ पृथग्दशपलं क्षीरे पञ्चमूलं च साधयेत् ॥तत्पयः फलवैदेहीकल्कद्विलवणान्वितम् ॥ ४९ ॥ ससितातैलमध्वाज्यो बस्तियोज्यो रसायनम् ॥ व्यायाममथितोरस्कक्षीणेन्द्रियबलौजसाम् ॥ ५० ॥ विबद्धशुक्रविण्मूत्रखुडवातविकारिणाम् ॥ गजवाजिरथक्षोभभ- , ग्मजर्जारतात्मनाम्॥५१॥ पुनर्नवत्वं कुरुते वाजीकरणसत्तमः।
गोह नौला बिलाव शेह मूसाके मांस ॥ ४८ ॥ पृथक् पृथक् चालीस चालीस तोले लवै इन्होंको और पंचमूलको दूधमें सिद्धकर पीछे मैंनफल पीपलका कल्क सेंधानमक कालानमकसे अन्वितकिया वह दूध ।। ४९ ॥ पीछे मिसरी तेल शहद घृतसे संयुक्तकरी यह बस्ति रसायन है और व्यायामकरके मथितछातीवाले और क्षीणहुई इन्द्रिय बल पराक्रमवाले ॥ ५० । और विबद्धहुए वार्य विष्ठा मूत्रवाले और वातरक्त विकारवाले हाथी घोडे रथके क्षोभसे भटा और जर्जरित शरीरवालेको ॥ ५१ ॥ फिर नवीनताको करताहै और वाजीकरणमें श्रेष्ठ है ।।
सिद्धेन पयसा भोज्यमात्मगुप्तोचटेक्षुरैः ॥ ५२ ॥ और कौंच के बीज चिरमठी इन्होंकरके सिद्धकिये दूधके संग भोजन करना योग्य है ॥ ५२ ।।
स्नेहाश्चायन्त्रणान्सिद्धान्सिद्धद्रव्यैः प्रकल्पयेत् ॥ यंत्रणासे रहित और सिद्ध स्नेहोंको सिद्ध द्रव्योंकरके कल्पितकरै ॥ दोषघ्नाः सपरीहारा वक्ष्यन्ते स्नेहबस्तयः॥५३॥दशमूलं बला रास्नामश्वगन्धां पुनर्नवाम्।।गुडूच्येरण्डभूतीकभाङ्गीवृषकरोहिषम् ॥ ५४॥शतावरी सहचरं काकनासां पलांशकम् यवमा
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