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(७१८)
अष्टाङ्गहृदयेदरभगन्दरान्।ग्रहणीपाण्डुरोगांश्च हन्ति पुंसवनश्च सः॥२०॥ गडः कल्याणको नामा सर्वेष्वतुषु यौगिकः ॥ वायविडंग पीपलामूल त्रिफला धनियां चीता मिरच इन्द्रयव जीरा पीपल गजपीपली ॥ १७ ॥ अजमोद पांचोनमक इन सबोंका चूर्ण अलग एक एक तोला लेवै और तिलका तेल तथा निशोतका चूरण बत्तीस बत्तीस तोले लेवै ॥ १८ ॥ आँवलाका रस १९२ तोले और २०० तोले गुड इन्होंको कोमल अग्निसे पकाकर तिसमेंसे मात्राको यंत्रणासे रहितहुआ मनुष्य खावै ॥ १९ ॥ कुष्ठ बवासीर कामला गुल्म प्रमेह उदररोग भगंदर ग्रहणी पांडुरोगको नाशताहै और पुरुषपनको करताहै ॥ २० ॥ यह कल्याणनामवाला गुड सव ऋतुओंमें युक्त कियाजाताहै ।।
व्योषत्रिजातकाम्भोदकृमिघ्नामलकैस्त्रिवृत् ॥२१॥ सर्वैः समासमसिताःक्षौद्रेण गुटिकाः कृताः॥ मूत्रकृच्छाज्वरच्छर्दिकासशोषभ्रमक्षये ॥ २२ ॥
तापे पाण्ड्वामयेऽल्पेऽग्नौ शस्ताः सर्वविषेषु च ॥ और झूठ मिरच पीपल दालचीनी इलायची तेजपात नागरमोथा वायविडंग आँवला ॥२१॥ये सब समानभाग और सबोंकी समान निशोत निशोतके समान मिसरीइनको शहदके संग बनाई गोलियां मूत्रकृच्छू ज्वर छर्दि खांसी शोष भ्रम क्षय ॥२२॥ ताप पांडुरोग मंदाग्नि सब प्रकारके विषमें श्रेष्टहै ।।
त्रिता कौटजं वीजं पिप्पलीविश्वभेषजम् ॥ २३॥
क्षौद्रद्राक्षारसोपेतं वर्षाकाले विरेचनम् ॥ और निशोत इन्द्रयव पीपल झूठ ॥ २३ ॥ इन्होंको शहद और दाखके रससे संयुक्त करै यह वर्षाकालमें जुलाबहै ॥
त्रिवृदुरालभामुस्तशर्करोदीच्यचन्दनम् ॥ २४ ॥
द्राक्षाम्बुना सयष्टयाडं शातलं जलदात्यये ॥ और निशोत धमांसा नागरमोथा खांड नेत्रवाला चंदन ॥ २४ ॥ मुलहटी शातला इन्होंको दाखके रसके संग लेवै यह शरद ऋतुमें जुलाबहै ।
त्रिवृतां चित्रकं पाठामजाजी सरलं वचाम् ॥२५॥
स्वर्णक्षारी च हेमन्ते चूर्णमुष्णाम्बुना पिबेत् ॥ और निशोत चीता पाठा जीरा सरलवृक्ष वच ॥ २५ ॥ चोक इन्होंके चूर्णको गरमपानीके संग पीथै यह हेमंत ऋतु जुलाबहै ॥
त्रिवृता शर्करातुल्या ग्रीष्मकाले विरेचनम् ॥ २६ ॥ और बराबर भागके खांडसे संयुक्तकरी निशोत ग्रीष्मकालमें जुलाबहै ॥ २६ ॥
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