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.(६७८)
अष्टाङ्गहृदयेलेपोऽतिकठिने परुषे सुप्ते कुष्ठे स्थिरे पुराणे च ॥
पीतागदस्य कार्यों विषैः समन्त्रागदैश्वानु॥ ५७॥ . कठोर तप्त स्थिर और पुराने कुष्ठों औषधके पानको किये रोगीके मंत्रों सहित विषों करके लेप करना पीछे औषधोंका लेप करना योग्यहै ॥ १७ ॥
स्तब्धातिसुप्तसुप्तान्यस्वेदनकुण्डलानि कुष्ठानि ॥
घृष्टानि शुष्कगोमयफेनकशस्त्रैःप्रदेह्यानि ॥ ५८ ॥ स्तब्ध और अत्यंत सुप्त और स्वेदसे रहित और खाजसे संयुक्त कष्ट सूख गोवर भांक शस्न इन्हों करके घृष्टकिये लेपके योग्यहैं ॥ ५८ ॥
मुस्तात्रिफलामदनं करञ्ज आरग्वधकलिङयवासप्ताह्वकुष्ठफ लिनीदाासिद्धार्थकं स्नानम्॥५९॥एष कषायो वमनं विरेचनं वर्णकरस्तथोद्धर्षः॥ त्वग्दोषकुष्ठशोफप्रबोधनःपाण्डुरोगनः॥६०॥ नागरमोथा त्रिफका मैनफल करंजुआ अमलतास इंद्रजव शातला कूठ कलहारी रसोंत सरसों इन्होंकरके स्नान योग्यहै ।। ५९ ॥ यही क्वाथ वमन है और यही जुलाब है और यही वर्णको करताहै और यही अतिशयकरके घर्षरूपहै और यही त्वचादोष कुष्ठ शोजा इन्होंको बोध करताहै और यही पांडुरोगको हरताहै ॥ ६ ॥
करवीरनिम्बकुटजाच्छम्याकाचित्रकाच्च मूलानाम् ॥ ___ मूत्रे दर्वीलेपी काथो लेपेन कुष्टघ्नः ॥६१॥ कनेरकी जड नींबकी जड कूडाकी जड अमलतासकी जड चीताकी जड इन्होंकरके चौगुने गोमूत्रमें किया काथ जब कडछीपै चिपकनेलगे तब अग्निस उतार लेप करनेसे कुष्टको नाशताहै ॥ ६१ ॥
श्वेतकरवीरमूलं कुटजकरात्फलं त्वचो दााः ॥
सुमनःप्रवालयुक्तो लेपः कुष्ठापहः सिद्धः॥ ६२ ॥ सफेद कनेरकी जड इंद्रजव करंजुआका फल दारुहलदीकी छाल चमेलीके पत्ते इन्होंसे संयुक्त किया सिद्धरूप लेप कुष्ठको नाशता है ॥ ६२॥
शैरीषीत्वक्पुष्पं कार्यास्याराजवृक्षपत्राणि ॥ पिष्टा चकाकमा
ची चतुर्विधः कुष्ठहा लेपः॥६३॥ व्योषसर्षपनिशागृहधूमैर्या• वशूकपटुचित्रककुष्ठैः॥ कोलमात्रगुटिका विषांशाः श्वित्रकु
ष्ठहरणो वरलेपः॥ ६४॥ शिरसकी छाल और फूल इन्होंका लेप और कपासकी जडका लेप और अमलतासके पत्तोंका लेप और पिसीहुई मकोहका लेप ये चार प्रकारके लेप कुष्ठको नाशतेहैं ॥ ६३ ॥ सूट मिरच
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