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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (११) आदिके भेदसे तथा संसर्गसे तथा अनुरसकी तारतम्यकी कल्पनाके वशसे भिद्यमानरूपभी हैं तथापि षट्य अर्थात छह संख्याको नहीं उल्लंघन करते हैं । यह कारण इसमें विचारसे स्फुट है । तत्राद्या मारुतं नन्ति त्रयस्तिक्तादयः कफम् ॥१५॥ कषायतिक्तमधुराः पित्तमन्ये तु कुर्वते । तिन रसोंके मध्यमें पहले कहे हुवे तीनरस स्वादु, अम्ल और लवण यह वातको शान्त करतेहैं, और तिक्त ऊषण कषाय यह तीनों वातको कोप करानेवाले हैं । और तीन तिक्त, ऊषण कषाय हैं वे कफको शान्त करनेवाले हैं। और मधुर अम्ल लवण यह तीनों उसी कफको बढानेवाले हैं। और कषाय तिक्त मधुर यह तीनों पित्तको नाश करते हैं । और अम्ल लवण कटुक यह तीनों पित्तको बढाते हैं । तिस्से यह कहागया कि मधुर रस वात पित्तका नाश करनेवाला और कफको बढानेवाला है। और अम्ल रस वातको शान्त करता है, और कफ पित्तको बढाता है । और लवण रस वायुको नाश करता है, और कफपित्तको बढाता है । और तिक्तरस कफ और पित्तको नाश करता है और वातको बढाता है और ऊषण रस कफको नाश करता है और वात पित्तको बढाता है । और कषायरस कफ पित्तको नाश करता है, और वातको बढाता है।। और इन रसोंका आश्रय अर्थात् रहनेका स्थान द्रव्य है सो तीन तरहका है इसको कहते हैं शमनमित्यादि वृत्ताईसे। शमनं कोपनं स्वस्थहितं द्रव्यमिति त्रिधा ॥१६॥ इस प्रकारसे शमन आदिके भेदसे तीन प्रकारवाला द्रव्य होता है और प्रकारसे तो दो प्रकार वाला अथवा अनेक प्रकारवाला है। इतिशब्दका अर्थ यहांपर सदृश है । जो पित्त आदि दोषोंको शान्त करनेवाला है सो शमन कहलाता है । जैसे तैल घृत सहत । तिनमें तैल द्रव्य स्नेह औदा> गौरव गुणोंके योगसे इससे विपरीत गुणवाला अर्थात् रूक्षत्व लघुत्व शीतलत्व गुणवाले जो बात तिसको नाश करता है। ___ और घृतरस, मधुरत्व शीतलत्व मन्दत्व गुणोंवाला होनेसे अपनेसे विपरीत गुणोंवाला अर्थात् कटुत्व उष्णत्व शीघ्रकारित्व गुणोंवाले पित्तको शान्त करताहै । और सहत रूक्षत्व शीघ्रकारित्व कषाय गुणोंवाले होनेसे अपनेसे विरुद्ध गुणवाले अर्थात् स्नेह मन्दत्व लक्षणत्व गुणोंवाले कफको शान्त करते हैं । और जो द्रव्य वात आदिदोषोंको और रस आदि धातुओंको और मूत्र आदि मलोंको बढानेवाला होता है सो कोपन कहलाता है । जैसे यवक पटल उडद मत्स्यका मांस मूलक सर्षप मण्डक दधि दूधका विकार मावा आदि किलाट विरुद्ध (मध्यपयः) For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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