________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् ।
दन्त्याढकमपां द्रोणे पक्त्वा तेन घृतं पचेत् ॥ धामार्गवपले पीतं तदूर्ध्वाधो विशुद्धिकृत् ॥ २१ ॥
२५६ तोले जमालगोटाकी जडको १०२४ तोले पानी में पका तिसकरके और रानी कडवी - तोरीके ४ तोलेभर कल्कमें घृतको पकाव पानकिया यह घृत मुख और गुदाके द्वारा शुद्धिको करता है ॥ २१ ॥
( ६७३ )
आवर्त्तकीतुलान्द्रोणे पचेदष्टांशशेषितम् ॥ तन्मूलैस्तत्र निर्यूहे घृतप्रस्थं विपाचयेत् ॥ २२॥ पीत्वा तदेकदिवसान्तरितं सुजीर्णे भुञ्जीत कोद्रवसुसंस्कृतकाञ्जिकेन । कुष्ठं किलासमपचीञ्च विजेतुमिच्छन्निच्छन्प्रजाञ्च विपुलां ग्रहणं स्मृतिञ्च ॥ २३ ॥
और १०२४ तोले पानी में जमालगोटेकीजड भगवतवली पकावै, जब आठवां भाग शेष रहे तब उसीकी जडके कल्कों करके तिस काथमें ६४ तोले घृतको पावै ॥ २२ ॥ पीछे १ दिन के अंतरितमें पान करके और अच्छीतरह जीर्णहुये घृतमें कुष्ठ किलाश अपची इन्होंको जीतनेकी इच्छा करता हुआ और विपुल संतान और ग्रहण स्मृतिको इच्छा करता हुआ मनुष्य कोदूकरके संस्कृतकरी कांजी के संग भोजनकरे ॥ २३ ॥
यतेर्लेलीतकवसा क्षौद्रजातीरसान्विता ॥
कुष्ठघ्नी समसर्पिर्वा सगायत्र्यसनोदका ॥ २४ ॥
ब्रह्मचर्यमें स्थित पुरुषको कालानमक नमक तेल गंध शहद बोलके रसके साथ हित कारी है. अथवा बराबर घृतसे युक्त खैर और असनाके रसयुक्त कुष्टन्नी होती है ॥ २४ ॥
शालय यवगोधूमाः कोरदृषाः प्रियङ्गवः ॥ मुद्रा मसूरास्तुवरी तिक्तशाकानि जाङ्गलम् ॥ २५ ॥ वरापटोलखदिरनिम्बारुष्करयोजितम् ॥ मद्यान्यौषधगर्भाणि मथितं चेक्षुराजितम् ॥२६॥ अन्नपानं हितं कुष्ठे न त्वम्ललवणोषणम् ॥ दधिदुग्धगुडा नृपतिलमाषांस्त्यजेत्तराम् ॥ २७ ॥
For Private and Personal Use Only
शालिचावलका यव गेहूं कोदू कांगनी मूंग मसूर तूरीअन्न तिक्तशाक जांगलदेशका मांस ॥२५॥ त्रिफला परवल खैर नींब भिलावां इन्होंसे योजित किया अन्न और औषधोंके कल्कोंसे संयुक्त मदिरा और वावचीसे संयुक्त मंथ ॥ २६ ॥ ऐसा पाककुष्ठमें हित है और खटाई नमक तीक्ष्ण पदार्थ दही दूध गुड अनूपदेशका मांस तिल उडद इन्होंको कुष्ठरोगी अतिशय करके त्याग ॥२७॥ पटोलमूलत्रिफलाविशालाः पृथक्रिभागाः पचितत्रिशाणाः । स्युस्त्रायमाणा कटरोहिणी च भागार्द्धिके नागरपादयुक्ते ॥ २८॥
४३