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(६५४)
अष्टाङ्गहृदये. लिह्यात्ततो मधु ॥११॥ पाण्डुरोगं ज्वरं दाहं कासं श्वासम
रोचकम् ॥गुल्मानाहामवातांश्च रक्तपित्तं च तजयेत् ॥ १२ ॥ __ और इंद्रायण कुटकी नागरमोथा कूट देवदार इन्द्रजव ॥ १०॥ ये सब एक एक तोले और मूर्वा २ तोले और अतीश आधातोला इन्होंके चूर्णको गरम पानीके संग पीकर ऊपर शहदको चाटै ॥ ११ ॥ यह पांडुरोग ज्वर दाह खांसी श्वास अरोचक गुल्म अफारा आमवात रक्तपित्तको जीतताहै ।। १२ ॥
वासागुडूचीत्रिफलाकट्वीभूनिम्बनिम्बजः ॥
काथः क्षौद्रयुतो हन्ति पाण्डुपित्तास्त्रकामलाः॥१३॥ वांसा गिलोय त्रिफला कुटकी चिरायता नींब इन्होंका शहदसे संयुक्त किया काथ पांडु रक्तपित्त कामलाको नाशताहै ॥ १३ ॥
व्योषाग्निवेल्लत्रिफलामुस्तैस्तुल्यमयोरजः ॥ चूर्णितं तक्रमध्वाज्यकोष्णाम्भोभिः प्रयोजितम् ॥ १४ ॥ कामलापाण्डुहृ
द्रोगकुष्ठाशोंमेहनाशनम् ॥ . सूंठ मिरच पीपल चीता वायविडंग त्रिफला नागरमोथा इन सबोंके समान लोहका चूर्ण इस चर्णको तक्र शहद घृत गरम पानी इन्होंके संग प्रयुक्त करै ॥ १४ ॥ यह कामला पांडु हृद्रोग कुष्ठ ववासीर प्रमेहको नाशताहै ।
गडनागरमण्डूरतिलांशान्मानतः समान् ॥१५॥ पिप्पलीर्द्विगुणान्दद्यागुटिकां पाण्डुरोगिणे॥ और गुड सूठ मंडूर तिल ये समभाग लेबै ॥ १५ ॥ और पीपल दुगुने लेबै इन्होंकी गोलीको पांडुरोगीके अर्थ देवै ।।
ताप्यं दाास्त्वचं चव्यं ग्रन्थिकं देवदारु च ॥ १६॥व्योषादि नवकं चैतच्चूर्णयेद्विगुणं ततः॥ भण्डूरं चाअननिभं सर्वतोऽ ष्टगुणेऽथ तत्॥१७॥ पृथग्विपक्के गोमूत्रे वटकीकरणक्षमे ॥प्रक्षिप्य वटकान्कुर्यात्तान्खादेत्तक्रभोजनः॥१८॥ एते मण्डूर वटकाःप्राणदा पाण्डुरोगिणाम् ॥ कुष्ठान्यजरकं शोफमूरुस्तम्भमरोचकम् ॥ १९ ॥ असि कामलां मेहान्प्लीहानं शमयन्ति च ॥
और सोनामाखी दारुहलदीकी छाल चव्य पीपलामूल देवदार ॥ १६ ॥ सूंठ मिरच पीपल इनका चूर्ण करै, और इन सबोंसे दुगुना और अंजनके सदृश मंडूर और सबोंसे ८ गुने ॥ १७॥
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