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चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (६५३) अनार १६ तोले धनियां ८ तोले चीता आर अदरक चार चार तोले पीपल दोर तोले ॥२॥ इन कल्कोंके संग ८० तोले घृतको २५६ तोले पानीमें पकावै सिद्ध हुआ यह घृत हृद्रोग पांडु गुल्म बवासीर तिल्लीरोग वात और कफकी पीडाको नाशता है ॥ ३ ॥ और दीपनहै श्वास और खांसीको नाशताहै और मूढवातको अनुलोमित करता है और दुःखकरके प्रसव होनेवाली स्त्रियोंको और वंध्यात्रियोंको प्रशस्तहै ॥ ४ ॥
स्नेहितं वामयेत्तीक्ष्णैःपुनः स्निग्धं च शोधयेत् ॥
पयसा मूत्रयुक्तेन बहुशः केवलेन वा ॥ ५॥ स्नेहित किये पांडुरोगीको तीक्ष्ण औषयोंकरके वमन करावै, फिर स्निग्ध हुयेको बहुतसे गोमूत्रसे संयुक्त किये दूधकरके शोधित करावै अथवा अकेले दूधकरके शोधित करावै ॥ ५ ॥
दन्तीपलरसे कोष्णे काश्मर्याञ्जलिमासुतम् ॥ द्राक्षाञ्जलिं वा मृदितं तत्पिबेत्पाण्डुरोगजित् ॥६॥
मूत्रेण पिष्टा पथ्यां वा तत्सिद्धं वा फलत्रयम् ॥ ४ तोले प्रमाणसे संयुक्त और कछुक गरम जमालगोटाकी जडके रसमें खंभारीके ८ तोले अर्कको अथवा मर्दित करी ८ तोले दाखको मिलाके पीवै यह पांडुरोगको जीतताहै ॥ ६ ॥ अथवा गोमूत्रसे पीसी हुई हरडको पवि, अथवा गोमूत्र में सिद्ध किये त्रिफलाको पावै ॥
स्वर्णक्षीरीत्रिवृच्छयामाभद्रदारुमहौषधम् ॥७॥ गोमूत्राञ्जलिना पिष्टं शृतं तेनैव वा पिबेत् ॥
साधितं क्षीरमेभिर्वा पिबदोषानुलोमनम् ॥ ८॥ और चोष निशोत मालविकानिशोत देवदार सूंठ ॥ ७ ॥ इन्होंको आठताले गोमूत्रमें पीस और गोमूत्रमेंही पका पीवै अथवा इन्हीं औषधोकरके सिद्ध किये दूधको पावै यह दोषको अनुलोम करताहै
मत्रे स्थितं वा सप्ताहं पयसाऽयोरजः पिबेत् ॥
जीर्णे क्षीरेण भुञ्जीत रसेन मधुरेण वा ॥९॥ गोमूत्रमें ७ दिनोंतक स्थित हुये लोहाके चूर्णको दूधके संग पीवै, और जर्णि होने दूधके संग अथवा मधुररूप मांसके रसके संग भोजन करै ॥९॥ .
शुद्धश्चोभयतो लिह्यात्पथ्यां मघुघतप्लुताम् ॥ गुदा और मुखके द्वारा शुद्ध हुआ मनुष्य घृत और शहदसे संयुक्त करी हरडैको चाटै । विशालां कटुका मुस्तां कुष्ठं दारुकलिङ्गकः॥१०॥कर्षांशाद्विपिचुर्मू, कर्षा शा घुणप्रिया॥पीत्वा तच्चूर्णमम्भोभिःसुखै
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