________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
__ चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम्। (६४१) और शेषशेषकी निवृत्तिके अर्थ उदररोगी ॥ ३९ ॥ गोमूत्रकरके भावित करी हजार हरडोंको खावै, और दूधका अनुपान करै अथवा थूहरके दूधसे भावित करे १००० पीपलोंको खावै ॥ ४० ॥ पथवा वर्द्धमानपीपलीको खावै अथवा दूधको भोजन करनेवाला मनुष्य शिलाजीतको खावै अथवा तैसेही गूगलको खावै अथवा बराबर भाग अदरखके रससे संयुक्त दूधको पावै॥४१॥
चित्रकामरदारुभ्यां कल्कं क्षीरेण वा पिबेत्।मासं युक्तस्तथा हस्तिरिष्पली विश्वभेषजम् ॥ ४२ ॥ विडङ्गं चित्रको दन्ती चव्यं व्योपं च तैः पयः॥ कल्क कोलसमैः पीत्वा प्रवृद्धमुदरं जयेत् ॥४३॥
अथवा चीता और देवदारके कल्कको दूधके संग पीवै अथवा एक महीनातक निरंतर गजपीपल और सूंठके कल्कको दूधके संग पीवै ॥ ४२ ॥ वायबिडंग चीता जमालगोटाकी जड चव्य सूंठ मिरच पीपल इन्होंके ८ मासेभर कल्कोंकरके आलोडित किये दूधका पान करके मनुष्य बढेहुये उदररोगको जीतताहै ॥ ४३॥
: भोज्यं भुञ्जीत वा मासं स्नुहीक्षीरघृतान्वितम् ॥
उत्कारिकां वा स्नुक्क्षीरपीतपथ्याकणाकृताम् ॥४४॥ . अथवा थूहरका दूध और घृतसे संयुक्त किये भोजनको अथवा थूहरके दूधमें सिद्ध किये घृतको अथवा थूहरके दूधमें सिद्ध किया घृत बडी हरडै कुरंटा पीपल इन्होंसे करी लप्सिका इन्होंको खावै४४॥
पार्श्वशूलमुपस्तम्भ हृद्ग्रहं च समीरणः।यदि कुय्यार्त्ततस्तैलं बिल्वक्षारान्वितं पिबेत् ॥४५॥पकं वा टिण्टुकबलापलाशं तिः लजालजैः॥क्षारैः कदल्यपामार्गतर्कारीजैःपृथकृतैः॥ ४६॥ जो कदाचित् वायु पशलीशूल उपस्तंभ हृद्ग्रह इन्होंको करै तब वेलगिरी और जवाखारसे संयुक्त किये तेलको पीवै ॥ ४५ ॥ अथवा टेंटू खरेहटी केसू तिलजाल इन्होंसे उपजे खारोंकरके और केला ऊंगा अरनी इन्होंके पृथक् पृथक् खारोंकरके पक किये तेलको पीवै ॥ ४६॥ ___ कफे वातेन पित्ते वा ताभ्यां वाप्यावृतेऽनिले ॥
बालिनः स्वौषधं युक्तं तैलमैरण्डजं हितम् ॥४७॥ वायुकरके आवृत हुये कफमें अथवा पित्तों अथवा पित्त और कफ करके आवृत हुये बायुमें बलवाले मनुष्यको अरंडके चूर्णसे संयुक्त किया अरंडीका तेल हितहै ॥ ४७ ॥
देवदारुपलाशार्कहस्तिपिप्पलिशिग्रुकैः॥
साश्वकर्णैः सगोमूत्रैः प्रदिह्यादुदरं बहिः॥४८॥ देवदार ढाक आक गजपपिल सहोजना रालवृक्ष गोमूत्र इन्होंकरके बाहिरसे पेटको लेपितकरै॥४८॥
४१
For Private and Personal Use Only