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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६२८) अष्टाङ्गहृदयेद्विपलं त्रायमाणाया जलद्विप्रस्थसाधितम्।।अष्टभागस्थितं पृतं कोष्णं क्षीरसमं पिबेत् ॥६७॥ पिबेदुपरि तस्योष्णं क्षीरमेवः यथाबलम्।।तेन निर्हतदोषस्य गुल्मः शाम्यति पैत्तिकः॥६८॥ आठ तोले त्रायमाणको १२८ तोले पानीमें पकावै जब आठवां भाग शेष रहै तब. वस्त्रमें छानि कछुक गरम गरम और दूधके समान तिस रसको पावै ॥ ६७ ॥ तिसके ऊपर बलके अनुसार गरम दूधको पीचे तिसकरके निकासहुये दोपोंकाले मनुष्यके पित्तका गुल्म शांत होजाताहै॥ ६८ ॥ दाहेऽभ्यंगो घृतैः शीतैः साज्यैलेंपो हिमौषधैः॥ स्पर्शः सरोरुहां पत्रैः पात्रैश्च प्रचलज्जलैः॥६९ ॥ पित्तसे उपजे गुल्मकी दाहमें शीतवीर्यवाले औषधोंकरके साधित किये वृतोकरके और घृतसे संयुक्त करी शीतल औषधोंकरके लेप करे और कमलके पत्तोंकरके और चलायमान पानियोंके पत्रोंकरके स्पर्श करै ॥ ६९ ॥ विदाहपूर्वरूपेषु शले वह्वेश्च मार्दवे॥ बहुशोऽपहरेद्रक्तं पित्तगुल्मे विशेषतः ॥ ७० ॥ विदाहके पूर्वरूपमें तथा शूलमें तथा अग्निकी मंदतामें बहुतवार रक्तको निकासै और पित्तके गुल्ममें विशेषकरके रक्तको निकासै ॥ ७० ॥ छिन्नमूला विदह्यन्ते न गुल्मा यान्ति च क्षयम् ॥ रक्तं हि व्यम्लतां याति तच नास्ति नचाऽस्ति रुक् ॥ ७१ ॥ छिन्नमूलवाले गुल्म दाहको प्रातहोतेहैं, और नाशको नहीं प्राप्त होतेहै क्योंकि भीतर स्थित होनेवाला रक्त व्यम्लभावको प्रात होजाताहै इसवास्ते तिस रक्तसे उपजी पीडा नहीं होती ॥७१ ॥ हृतदोषं परिम्लानं जांगलैस्तर्पितं रसैः॥ समाश्वस्तं सशेषार्ति सपिरभ्यासयेत्पुनः ॥७२॥ हृत हुये दोपोंवाला और परिम्लान और जांगलदेशके मांसोंके रसोंकरके तृप्त हुआ और अच्छी तरह आश्वासित किया और शेष रहे पीडासे संयुक्त तिस रोगीको बारंबार घृतका अभ्यास करावे ॥ ७२ ॥ रक्तपित्तातिबृद्धत्वाक्रियामनुपलभ्य वा॥ गुल्मे पाकोन्मुखे सर्वा पित्तविद्रधिवक्रिया ॥ ७३ ॥ रक्तपित्तकी अतिवृद्धतासे अथवा क्रियाको नहीं प्राप्त होके पाकसे उन्मुख हुये गुल्ममें पित्तकी विद्रधीक समान सब क्रिया करनी ॥ ७३ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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