SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 674
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (६११) चूर्णसे लेपित किये और दृढ़ और लाखकरके लेपितकिये घृतके पात्रमें स्थापित करके जवोंके समूहमें स्थापित करे ॥ ३१ ॥ पीछे खैरके अंगारोंमें अत्यंत तप्त किये और अत्यंत सूक्ष्म तीक्ष्णलोहाके पत्तोंको लोहका संक्षय हो तबतक निमजित रक्खै ॥ ३२ ॥ यह अयस्कृति है पान करनेसे यह पूर्वोक्त आसबसे अधिक गुणोंको देतीहै । सक्षमुद्वर्त्तनं गाढं व्यायामो निशि जागरः॥३३॥ - यच्चान्यच्छेष्ममेदोघ्नं बहिरन्तश्च तद्धितम् ॥ और तिस प्रमेहमें रूक्ष और गाढ उद्वर्तन कसरत रात्रिमें जागना ॥ ३३ ॥ और अन्यभी कफ और मेदको नाशनेवाला शरीरके भीतर और बाहिर प्राप्त हुआ पदार्थ हित है ।। मुभाविता सारजलैस्तुलां पीत्वा शिलोद्भवात्॥३४॥ साराम्बु नैव भुनानः शालिजाङ्गलजैरसैः ॥ सर्वानभिभवेन्मेहान्सुब हूपद्रवानपि॥३५॥गण्डमालार्बुदग्रन्थिस्थौल्यकुष्ठभगन्दरान्॥ कृमिश्लीपदशोफांश्च परं चैतद्रसायनम् ॥ ३६॥ . और आसना खैर आदिके रसोंकरके भावित करी ४०० तोले शिलाजीतको आसना और खैर आदिके पानी के संग पानकरके ।। ३४ ॥ पीछे शालिचावल और जांगल देशके मांसके रसोंके संग भोजन करता हुआ मनुष्य उपद्रवोंसे सहित सब प्रकारके प्रमेहोंको ॥ ३५ ॥ और गंडमाला अर्बुद ग्रंथी स्थूलपना कुष्ठ भगंदर कृमिरोग श्लीपद शोजा इन्होंको नाशता है और यह उत्तम रसायन है ।। ३६ ॥ अधनश्छत्रपादत्ररहितो मुनिवर्तनः ॥ योजनानां शतं याया त्खनेद्वा सलिलाशयान् ॥ ३७ ॥गोशकृन्मूत्रवृत्तिर्वा गोभिरेव सह भ्रमेत् ॥ धनसे रहित प्रमेहरोगी छतरी और जूती जोडासे रहित होके और मुनियोंकी वृत्तिको धारण करके ४०० कोशतक गमन करै, अथवा जोहडआदि जलके स्थानोको खोदै ॥ ३७ ॥ अथवा गायका गोवर और गोमूत्रमें वृत्तिवाला होके गायके संग भ्रमण करता रहै ॥ बृंहयेदौषधाहारैरमेदोमूत्रलैःकृशम् ॥ ३८॥ और भेदका नाश और मूत्रको उत्पन्न करनेवाले औषधोंसे संयुक्त भोजनों करके कृश मनुष्यको पुष्ट करै ॥ ३८॥ शराविकाद्याः पिटिकाः शोफवत्समुपाचरेत् ॥ अपक्का व्रणवत्पक्कास्तासा प्राग्रुप एव च ॥३९॥क्षीरिवृक्षाम्बुपानाय बस्त मूत्रं च शस्यते॥तीक्ष्णं च शोधनं प्रायो दुविरेच्या हि मेहिनः ४० For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy