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(४)
अष्टाङ्गहृदयेरक्तपित्त अतिसार आदि रोगकी निवृत्तिका यत्न जहां वर्णनविषय होवे सो प्रथम कायचिकित्साओंका अंगे है. बल सत्व सम्पूर्ण धातुवाला होनेसे यौवनअवस्थावालेका उपयोगी अंग बाल अगसे पहले कहागया । बालदेहमें सम्पूर्ण बल.धातुओंके न होनेसे असंपूर्णवयोऽवस्थाके प्रभावके होनेसे बालचिकित्साप्रकरण दूसरा अलग कहा है । तैसेही बालकको उपयोगकरनेवाला औषध आंवलेका दूध कहा है । क्योंकि वह दूधैसे उत्पन्न व्याधियोंकी शांतिका कारक है । इसप्रकार रोग और उनरोगोंको दूरकरनेवाले औषधोंके भेदसे और अङ्गोंसे बालचिकित्साका अंग पृथक् कहागया । अर्थात् बालकका जीवनसाधन केवल दूधही होता है, इस कारणसे बालकको दूधसेही बहुधा रोगे होताहै । और प्रकृष्टतासे आयुकी अवस्थाको अनुभव करनेवालेके देहेमें नानापदार्थ जीवनसाधन होनेसे अनेक कारण उसदेहके रोगोंकी उत्पत्ति होते हैं इससे बालचिकित्सा और चिकित्साओंसे भिन्न कहीगई। .
इस प्रकार तीसरा ग्रहचिकित्साओंका अंग उसको जाना चाहिये कि जहां देव आदि ग्रहोंसे ग्रस्त प्राणियों के लिये शान्तिकर्म कहा जावे ।।
और जहां जत्रु अर्थात् कंधेकी सन्धियोंसे ऊपर नेत्रं कान नासिका आदि अङ्गोंमें पैदा हुये रोगोंकी शान्ति आश्चोतन शलाका आदिकोंसे कही जावे, वह चौथा ऊर्द्धचिकित्साका अंग है । यहांपर जन्मसेही रोगोंकी निवृत्तिके यत्नों का विचार है । परन्तु कायचिकित्साको प्रधानहोनेसे पहले कायचिकित्साकोही कहा है। पश्चात् बालचिकित्सा । और बालकको ग्रहसम्बन्ध होता है इससे बालचिकित्साके पश्चात् ग्रहचिकित्सा कहींगई । फिर शरीरके मूलकी रक्षाके लिये ऊङ्गिचिकित्सा कहीगई । जिसको शालाक्य कहते हैं । पछि शस्त्रसाधन सामान्यसे पांचवां शल्यचिकित्साओंका अंग कहागया क्योंकि रोगोंकी तरह शल्यभी पीडाको करता है पीछे दंष्ट्रचिकित्साओंका छठवां अंग कहागया। दंष्ट्रा विषबाली । पीछे विषसे शीघ्रही मरणकी सम्भावना होनेपर रसायनका योग उपयुक्त है। इससे रसायन चिकित्साका सातवां अंग कहागया। अथवा रसायनसे विष दूर होता है इसवास्ते रसायनके कहनेका प्रस्ताव है।पीछे वाजीकरणके भरणका आठवां प्रस्ताव है । सोही ग्रंथकार कहेंगे कि "वाजीकरणमन्विच्छेत्सततं विषयी पुमानिति" अर्थ
.१ प्रकरण ।२ आंवले का दूध ।३काय आदि ।४ शंका। जोकि दूध जीवनसाधन है वह रोगको किस तरह पैदा करेगा, और जो रोगको पैदाकरनेवाला है सो जीवनसाधन कैसे होसक्ताहै क्योंकि उपयोगिभाव और शत्रुभाव यह दोनों भाव एकपर नहींरहसक्ते हैं क्योंकि दोनों धौका परस्पर निरन्तरविरोधिभाव होनेसे नकुलसर्पकी तरह एक स्थानपर रहनेका असम्भव है। उत्तर-जिसका दूध है वह भोजन आदिकोंमें जबकुपथ्य करताहै तब उसका दूध दुष्टगुणवाला होजाताहै और उस दुष्टगुणवाले दूधको पान करनेवालेका शरीर रोगसे ग्रस्त होताहै, और जीवितका साधन वही दूध है कि जो दूध पथ्यभोजनसे पैदा हुवाहै इत्यलं विस्तरेण । ५ अर्थात् यौवनअवस्था देहमें ॥
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