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(५८६)
अष्टाङ्गहृदयेकर्पोन्मिता तुगाक्षीरी चातुर्जातं द्विकार्षिकम् यवानीधान्य काजाजीग्रन्थिव्योषं पलांशकम्॥११३॥ पलानि दाडिमादष्टौ सितायाश्चैकताकृतः॥गुणैःकपित्थाष्टकवच्चूर्णोऽयंदाडिमाष्ट
कः॥११४ ॥ भोज्यो वातातिसारोक्तैर्यथावस्थं खलादिभिः॥ वंशलोचल १ तोला दालचीनी इलायची तेजपात नागकेशर ये दो दो तोले और अजवायन धनियां जीरा पीपलामूल सूट मिरच पीपल ये चार चार तोले ॥ ११३ ॥ अनार ३२ तोला मिसरी ३२ तोला ऐसे कपित्थाष्टककी तरह गुणोंको करनेवाला और चूर्णित किया यह दाडिमा. ष्टक ॥ ११४ ॥ वातातिसारमें कहेहुये पेया खल आदिके संग अवस्थाके अनुसार भोजन करना योग्यहै ॥
सविडङ्गः समारचः सकपित्थः सनागरः॥ ११५॥
चाङ्गेरीतक्रकोलाम्लः खलः श्लेष्मातिसारजित्॥ और वायविडंग मिरच कैथ सूंठसे संयुक्त ॥११५॥ और चूका तक बेर करके अग्लित किया खल कफके अतिसारको जीतताहै ॥
क्षीणे श्लेष्मणि पूर्वोक्तमम्लं लाक्षादिषट्पलम् ॥ ११६ ॥
पुराणं वा घृतं दद्याद्यवागू मण्डमिश्रिताम् ॥ और क्षीण हुये कामें पूर्वोक्त अम्लघृत और पूर्वोक्त लाक्षादि षटपलवृत ॥ ११६ ॥ अथवा पुराना घृत अथवा मंडसे मिलीहुई यवागूको देवै ॥
वातश्लेष्मविवन्धे च स्रवत्यतिकफेऽपिवा॥११७॥ शूले प्रवाहिकायां वा पिच्छाबस्तिः प्रशस्यते॥ वचाविल्वकणाकुष्टशताह्वालवणान्वितः॥११८॥
और वात कफ विबंधसे संयुक्त और अत्यन्त कफको झिरते हुये ॥ ११७ ॥ शूलमें अथवा प्रवाहिकामें वच बेलगिरी पीपल कूठ शतावरी नमकसे युक्त पिच्छाबस्ति श्रेष्ठहै ।। ११८ ॥
बिल्वतैलेन तैलेन वचाथैः साधितेन वा ।
बहुशः कफवातार्ने कोष्णेनान्वासनं हितम् ॥ ११९॥ बेलगिरीके तेलकरके अथवा वच आदि औषधोंके तेल करके अथवा तिलोंके कुछेक गरम किये तेलकरके बहुत कफ और वातसे पीडित रोगीके अर्थ अनुवासन करना हितहै ॥ ११९ ॥
क्षीणे कफे गुदे दीर्घकालातीसारदुर्वले। अनिलः प्रबलोऽवश्यं स्वस्थानस्थःप्रजायते॥१२०॥स बली सहसा हन्यात्तस्मा
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