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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५७६) अष्टाङ्गहृदयेबालबिल्वं गुडं तैलं पिप्पलीविश्वभेषजम् ॥३५॥ लिह्याद्वाते प्रतिहते सशूलः सप्रवाहिकः॥ वल्कलं शाबरं पुष्पं धातक्या बदरीदलम् ॥ ३६॥ पिबेदधिसरक्षौद्रकपित्थस्वरसाप्लुतम् ॥ और कच्ची वेलगिरी गुड तेल पीपल झूठ ॥ ३५ ॥ इन्होंको प्रतिहत हुये वायुमें शूलसे सहित प्रवाहिकावाला मनुष्य चाटै और लोधकी छाल और धायके फूल वडवेरीके पत्ते इन्होंकरके ॥३६॥ और सर शहद कैथका रस इन्होंकरके आजुत करी दहीको पावै ॥ विबद्धवातवर्चास्तु बहुशूलप्रवाहिकः ॥३७॥ सरक्तपिच्छस्तु ष्णातःक्षीरसौहित्यमर्हति ॥ यमकस्योपरि क्षीरं धारोष्णं वा प्रयोजयेत् ॥ ३८॥ शृतमेरण्डमूलेन बालबिल्वेन वा पुनः ॥ पयस्युक्वाथ्य मुस्तानां विंशतिं त्रिगुणेऽम्भसि ॥३९॥ क्षीराव शिष्टं तत्पीतं हन्यादामं सवेदनम् ॥ __बद्धवात और विष्ठावाला और अत्यंत शूल और प्रवाहिकावाला मनुष्य ।। ३७ ।। रक्त और पिच्छासे सहित और तृषासे पीडित मनुष्य दूधकरके तृप्तिकरनेके योग्य है अथवा मिश्रित किये तेल और दूधका पान करे ऊपर थनोंसे निकसे गरम दूधको प्रयुक्त करै ।। ३८ ॥ अरंडीकी जड करके अथवा कच्ची बेलगिरीकरके पकाये हुये दूधको फिर प्रयुक्त कर और दूधमें तथा तिगुने पानीमें ८० तोले नागरमोथेका क्वाथ बना ॥ ३९ ॥ जब दूधमात्र शेष रहै तब पीवै यह पीडा सहित आमको नाशताहै ॥ पिप्पल्याः पिबतः सूक्ष्मं रजो मरिचजन्म वा ॥ ४० ॥ चिरकालानुषक्तापि नश्यत्याशु प्रवाहिका ॥ और पीपलके सूक्ष्म चूरणको अथवा मिरचोंके सूक्ष्मचूरणको ॥ ४० ॥ पीवनेवाले मनुष्यके चिरकालसे उपजी प्रवाहिका तत्काल नष्ट होताहै। निरामरूपं शूला लंघनायैश्च कर्षितम् ॥४१॥ रूक्षकोष्ठमपेक्ष्याग्निं सक्षारं पाययेद्धृतम् ॥ सिद्धं दधिसुरामण्डे दशमूलस्य चाम्भसि ॥४२॥ सिन्धूत्थपञ्चकोलाभ्यां तैलं सद्योर्तिनाशनम्॥षभिः शुण्ठ्याः पलैाभ्यां द्वाभ्यां ग्रन्थ्यग्निसैन्धवात्॥४३॥ तैलप्रस्थं पचेदना निःसारकरुजापहम् ॥ आमसे वर्जित, शूलसे पीडित और लंधनआदिकरके कार्पत ॥४१॥ सूक्ष्मकोष्ठवाले मनुष्यकी अग्निको देखकर जवाखारसे संयुक्त किये घृतका पान करावै, दही और मदिराके मंडमें अथवा For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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