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चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् ।
( ५७३ )
भोज्यानि कल्पयेदूर्ध्वं ग्राहिदीपनपाचनैः ॥ ११ ॥ बालविल्वशठीधान्य हिंगुवृक्षाम्लदाडिमैः ॥ पलाशहपुषाजाजीयवानीविड सैन्धवैः॥ १२ ॥ लघुना पञ्चमूलेन पञ्चकोलेन पाठया ॥ शालिपर्णीबलाविल्वैः पृश्निपर्या च साधिता ॥ १३ ॥ दाडिमाम्ला हिता पेया कफपित्ते समुल्बणे || अभयापिप्पलीमूलबिल्वैर्वा तानुलोमनी ॥ १४ ॥
और इसके उपरांत अतिसाररोगी के अर्थ ग्राही दीपन पाचन औषधोंकरके संयुक्त ॥ ११ ॥ और कच्ची बेलगीरी, कचूर, धानियां, हींग, विजोरा, अनार, ढाक, हाऊबेर, जीरा, अजवायन, मनियारीनमक, सेंधानमक करके संयुक्त ॥ १२ ॥ और लघुपंचमूलकरके संयुक्त, अथवा पीपल, पीपलामूल, चव्य, चीता, सुंठ, पाठा करके संयुक्त भोजन कल्पित करनायोग्य है, और शालपर्णी खरैहटी, बेलगिरी, पृत्रिपर्णी इन्हों करके साधित ॥ १३ ॥ और अनार करके अम्ल हुई पेया कफपित्तकी अधिकतावाले अतिसार में हित है और हरडे, पीपलामूल, बेलगिरी, करके बनाई हुई पेया वातको अनुलोमित करती है ॥ १४ ॥
विबद्धं दोष हो दीप्ताग्निर्योऽतिसार्यते ॥ कृष्णाविडङ्गत्रिफ लाकषायैस्तं विरेचयेत् ॥ १५ ॥ पेयां युंज्याद्विरिक्तस्य वातन्नैदीपनैः कृताम् ॥
बहुतदोषोंवाला और दीप्तअग्निवाला मनुष्य अल्प अल्प करके अतिसारको प्राप्त होवे तिसको पीपल, वायविडंग, त्रिफला, करके जुलाबका देना उचित है ॥ १५ ॥ और विशेषकर के अतिसारको प्राप्त हुये रोगीको वातको नाशनेवाले और दीपन औषध करके बनाई पेयाको युक्त करै ।।
आमे परिणते यस्तु दीप्तेऽग्नावुपवेश्यते ॥१६॥ सफेनपिच्छं स रुजं सविबन्धं पुनः पुनः॥अल्पाल्पमल्पं समलं निर्विड्डा सप्रवाहिकम्॥१७॥ दधितैलघृतक्षैौद्रेः सशुण्ठीं सगुडां पिवेत्॥स्विन्नानिगुडतैलेन भक्षयेद्ददराणि वा ॥ १८ ॥ गाढविविहितैः शाकैर्वहुस्ने हैस्तथा रसैः॥ क्षुधितं भोजयेदेनं दधिदाडिमसाधितैः ॥ १९ ॥ शाल्योदनं तिलैर्माषैर्मुनेर्वा साधु साधितम् ॥ शय्या मूलकपोतायाः पाठायाः स्वस्तिकस्य वा ॥ २०॥ स्नुपायवानी ककारुक्षीरिणीचिर्भटस्य वा ॥ उपोदिकाया जविन्त्या बाकुच्या
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