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(५५२)
अष्टाङ्गहृदयेआककी जड, जांटीके पत्ते, मनुष्यके बाल, सर्पकी कांचली बिलावका चर्म, घृत, इन्होंकी धूप बबासीरके मस्सोंको हितहै ॥ १८ ॥ तथा असगंध, तुलसी, बडी कटेहली, पीपल घृत इन्होंकी धूप बवासीरके मस्सोंको हित है ॥
धान्याम्लपिष्टैर्जीमूतबीजैस्तज्जालकं मृदु॥१९॥ लेपितं छायया शुष्कं वर्तिर्गदजशातनी ॥ सजालमूलजीमूतलेहे वा क्षार संयुते ॥ २०॥ गञ्जासूरणकूष्माण्डबीजैवर्तिस्तथागुणा ॥ स्नु
क्षीराईनिशालेपस्तथागोमूत्रकल्कितैः॥ २१ ॥ कृकवाकुशकृत्कृष्णानिशागुञ्जाफलैस्तथा ॥ कांजीसे पीसे नागरमोथेके बीजोंसे जालके नागरमाथेके जालकको कोमल ॥ १९ ॥ लेपितकर और छायामें सुखाके करी हुई वर्ती गुदाके मस्सोंको नाशती है अथवा जाल और जडसे सहित नागरमोथेसे किये और जवाखारसे संयुक्त स्नेहमें ॥ २० ॥चिरमठी जमीकंद कोहलाके बीजोंसे करीहुई बत्ती गुदाके मस्सोंको नाशतीहै और थोहरके दूधमें गीलीकरी हलदीका लेप गुदाके मस्सोंको नाशताहै और गोमूत्रमें कल्पित किये ॥ २१॥ मुर्गेकी वीट पीपल हलदी चिरमटीका फल इन्होंकरके किया लेप गुदाके मस्सोंको नाशता है ।
स्नुकक्षीरपिष्टैः षड्ग्रन्थाहलिनीवारणास्थिभिः ॥२२॥ कुलीर शृङ्गीविजयाकुठारुष्करतुत्थकैः॥ शिग्रुमूलकजैर्बीजैः पत्रैरश्वघ्ननिम्बजैः॥२३॥ पीलुमूलेन विल्वेन हिंगुना च समन्वितैः।। कुष्ठं शिरीषबीजानि पिप्पल्यः सैन्धवं गुडः ॥ २४॥ अर्कक्षीरं सुधाक्षीरं त्रिफला च प्रलेपनम् ॥
और थूहरके दूधमें पीसेहुये बच कलहारी हाथीकी हड्डीसे ॥ २२ ॥ और काकडासिंगी, भांग, कूट, भिलावाँ, नीलाथोथा, सहँजना और मूलीके बीज, कनेरके और नाबके पत्ते ॥ २३ ॥
और पीलवृक्षकी जड, वेलगिरी, हींग इन्होंकरके, किया लेप गुदाके मस्सोको नाशताहै और कूठ, शिरसके बीज, पीपल, सेंधानमक, गुड, ॥ २४ ॥ आकका दूध, थूहरका दूध त्रिफला, इन्होंका लेप गुदाके मस्सोको नाशताहै ।।
अर्क पयःस्नुहीकाण्डं कटुकालावुपल्लवाः ॥२५॥ करओबस्त सूत्रं च लेपनं श्रेष्ठमर्शसाम् ॥ आनुवासनिकैर्लेपः पिप्पल्यायै श्च पृजितः॥२६॥ एभिरेवौषधैःकुर्यात्तैलान्यभ्यञ्जनानि च।
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